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________________ (८४) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी.। नलिका शीतला लघ्वी चक्षुष्या कफपित्तहत् । कृच्छ्राश्मवाततृष्णास्रकुष्ठकण्डुज्वरापहा ।। १३०॥ नलिका विद्रुमलता, कपोतचरणा, नटी, धमनी, अञ्जनकेशी, निर्मभ्या मुषिरा और नली यह नलीके नाम हैं। मली-शीतल, हलकी, नेत्रोंको हितकर तथा कफ, पित्त, कृच्छ्र, पपरी, बात, प्यास, रक्तविकार, कोढ, खुजली और, ज्वरको दूर करनेवाली है।॥ २९ ॥ १३०॥ प्रपौण्डरीकम् । प्रपौण्डरीकं पौंडयं चक्षुष्यं पौंडरीयकम् । पौंडय्य मधुरं तिक्तं कषायं शुक्रलं हिमम् । चक्षुष्यं मधुरं पाके वये पित्तकफप्रणुत् ।। १३१ ॥ इति कर्पूरादिवर्गः। प्रपौण्डरीक,पौण्डर्य,चक्षुष्य और पौण्डरीयक यह पौण्डरीयकके नाम हैं। ण्डरीयक-मधुर, तिक्तः कसैला, वीर्यवर्धक, शीतल, नेत्रहितकर, पाकमें मधुर, वर्णको उत्तम करनेवाला, पित्त तथा कफका नाश करने वाला है। ११॥ इति श्रीविद्यालंकार-शिवशर्मवैद्यशास्त्रिक्त-शिवप्रकाशिफामाषायां हरीतक्यादिनिघण्टौ कर्पूरादिवर्गः ॥ २ ॥ - क. गुइच्यादि-वर्गः । तत्रादौ गुडूच्या उत्पत्तिनाम मुणाश्च । अथ लंकेश्वरो मानी रावणो राक्षसाधिपः । रामपत्नी वनात्सीतां जहार मदनातुर ॥ ३॥
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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