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________________ [ ६२ ] पुस्तक - भंडार स्थापन किये । हजारों पुरातन जिन मंदिरोंका जीर्णोद्धार कराकर तथा नये बनवा कर भारत-भूमिको अलंकृतकी । तारंगादि तीर्थ क्षेत्रों पर के, दर्शनीय और भारत वर्षकी शिल्प कलाके अद्वितीय नमूनेरूप, विशाल और अत्युच्च मंदिर आज भी आपकी जैनधर्म प्रियताको जगत् में जाहीर कर रहे हैं । इस प्रकार आपने जैनब के प्रभावको जगत् में बहुत बढाया । संसारको सुखी कर अपने आत्माका उद्धार किया एक अंग्रेज विद्वान् लिखता है कि - " कुमारपालने जैनधर्मका बडी उत्कृष्टतासे पालन किया और सारे गुजरातको एक आदर्श जैन - राज्य बनाया ।" आपने अपने गुरु श्री हेमचंद्राचार्यकी मृत्युसे छ महीने बाद १२३० में ८० वर्षकी आयु भोगकर, इस असार संसारको त्याग कर स्वर्ग प्राप्त किया " [ कुमारपाल चरित्रकी प्रस्तावनासे उद्धृत ] --- Aho ! Shrutgyanam
SR No.034195
Book TitleGirnar Galp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherHansvijay Free Jain Library
Publication Year1921
Total Pages154
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
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