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________________ [ ६० १ उस समय के सर्वोत्कृष्ट नगरों में से एक थी । समृद्धिके शिखर पहुंची हुईथी । राजा और प्रजाके सुंदर महालयोंसे तथा मेरु पर्वत जैसे ऊंचे और मनोहर देवभुवनोंसे अत्यंत अलंकृत थी । हेमचंद्राचार्यने ' द्वाश्रय महाकाव्यमें इस नगरीका बहुत वर्णन किया है, सुना जाता है । कि उस समय इस नगर में १८०० तो क्रोडाधिपति रहते थे । इस प्रकार महाराज एक बडे भारी महाराज्य के स्वा मी थे । 1 " आप जिस प्रकार नैतिक और सामाजिक विषयोंमें औरोंके लिए आदर्श स्वरुप थे, उसी प्रकार धार्मिक विषयों में भी आप उत्कृष्ट धर्मात्मा थे, जितेंन्द्रिय थे और ज्ञानवान् थे । श्रीमान् हेमचंद्राचार्यका जबसे आपको अपूर्व समागम हुआ तभी से आपकी चित्तवृति धर्मकी तरफ जुडने लगी । निरंतर उनसे धर्मोपदेश सुनने लगे। दिन प्रतिदिन जैनधर्म प्रति आपकी श्रद्धा बढ़ने तथा दृढ होने लगी। अंतमें संवत् १२१६ के वर्ष में शुद्ध श्रद्धानपूर्वक जैनधर्मकी गृहस्थ दीक्षा स्वीकार की । Aho! Shrutgyanam
SR No.034195
Book TitleGirnar Galp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherHansvijay Free Jain Library
Publication Year1921
Total Pages154
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
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