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________________ [ १८ ] ओ वह हरतरहसे समर्थ है | संघवियोंके बुलानेपर मुनिने वहां आकर राजाको समझाया. परंतु जब देखा कि यह सामसाध्यतो नहीं तब अपनी मंत्रशक्तिसे उसे वशवर्त्ती करके श्रीतीर्थाधिराज गिरिनारको जैन संप्रदाय के हस्तगत किया ( विशेष के लिये देखो ऐतिहासिक राससंग्रह भाग दूसरा और उपदेश रत्नाकर संस्कृत, पत्र ९३ । ९४ । सज्जनकी विचार पटुता - और सिद्ध राजाका - औदार्य 66 अकसर करके इतिहास ग्रंथों में प्रसिद्ध है कि वनराज चावडे " ने विक्रम संवत् ८०२ में राज्य सिंहासनपर बैठकर जांब अपना प्रधान पक्का उपासक मंत्री बनाया था. जांब जैन धर्मका था । वनराज के पाट पर हुए २ योगराज ? क्षेमराज २ भूवड ३ वैरिसिंह ४ रत्नादित्य ५ सामंतसिंह ६ । यह सात राजा ( चावडा वंशीय ) - और - वृद्ध मूलराज १ चामुंडराज २ वल्लभराज ३ दुर्लभराज ४ भीमराज ५ कर्णराज ६ जयसिंहदेव Aho ! Shrutgyanam
SR No.034195
Book TitleGirnar Galp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherHansvijay Free Jain Library
Publication Year1921
Total Pages154
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
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