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________________ << [ १७ ] यात्रा करके जब गिरिनार पहुंचा तब वहां के राजा रागाने उन्हे ऊपर जाने से रोका और कहा यह तीर्थ बुद्ध धर्मका स्थान है, इसपर तुमारा किसी किसमका दखल नहीं, अगर तुम इस तीर्थ की यात्रा करना चाहते हो तो तुमको पहले बौद्ध धर्मको मानना जरूरी है, सिवाय इस शरत के तुम इस तीर्थ पर किसी तरह भी पूजा सेवाका लाभ नही ले सकते ! ! उसवक्त वहां औरभी ८३ गाम नगरों के संघ आये हुए थे. उन सर्व संघपतिओंने खेंगारको अनेक रीति से समझाया प्रलोभन तक भी दिया परंतु वह अपने हठसे न फिरा | संघवियोंने अपने सहचारियोंको पूछा कि अब क्या करना चाहिये ? सं के साथ जो वृद्ध विश्वसनीय मनुष्य थे, उन्होंने कहा इसवक्त किसी प्रभावक पुरुषकी आवश्यकता . है । इतने में "अंबिका " माताने किसी मनुष्य के शरीरमें प्रवेश करके कहा, किसी दुष्ट व्यन्तरने बौद्ध धर्मपर अपनापना होने से इस तीर्थको बौद्ध तीर्थ : ठहराया है, और राजा उस धर्मको मान देता है । जाओ फलानी पर्वत गुफार्मेसें बलभद्र मुनिको ला- Aho ! Shrutgyanam
SR No.034195
Book TitleGirnar Galp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherHansvijay Free Jain Library
Publication Year1921
Total Pages154
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
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