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________________ [ ९४] एक जात्रा सारके ॥१०॥४॥ सह गुरुने एम विनबीए ॥ पोचे घर परीवार के ॥ ह० ॥ ४ ॥ राय प्रतेकेरि वीनतिए लीधुं मुरत चंगके । ह० ॥ कंकोतरी तिहां पाठ वेए ॥ थानक थानके मन रंगके ॥ ह० ॥५।। नगरी माहे गोखाव्यु जेहने जोए जेहके ॥ ह०॥ ६॥ तेसविल्पो मुज पासथिए जात्रा करो धरी स्नेहके ॥ ह० ॥६॥ संघ सबल तिहां मेलिओए । लोकन लाभे पारके ॥१०॥ सहजवालानि संख्या नहि हे ॥ गज रथ अश्व उदारके ॥६० ॥७॥ पडह अमारि जावियारे ॥ सागे लोक अपारके ॥ ह० ॥ ८॥ बंध मुकावी बहु परिए लोक प्रते सत्कारके ॥६० ॥ ८॥ करभखवर सोभन भरा हे ॥ करे सखायत रायके ॥ ७ ॥९॥ सैन्य सबल साथे लियारे उलट अंग न मायके | ॥९॥ सेठाणी राणी कनेये ॥ करे मोकलामणी काजके ह० ॥ राणी कहे किपण थइए । रखे अ. णाबो लाजके ह० ॥१०॥ देतां कर चंचो रखे ए लक्ष्मी लियो मुज पासके ह० ॥ तुजो माहारी बेनडीए ॥ जो कहवाइश साबश के ह० ॥ ११ संघ Aho! Shrutgyanam
SR No.034195
Book TitleGirnar Galp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherHansvijay Free Jain Library
Publication Year1921
Total Pages154
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
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