SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [९२] मुझ देवा ॥ जिनवर कहे तिबारेरे ॥ आगार्माक चोविशि नेमिजिन ॥ बावीसमानें वारेरे ॥०॥४॥ एम सुणि सागर जिन पासे ।। सो नृप संजम लेइरे ।। पंचम कल्प तणो पति हूवो ॥ अवधी ज्ञान धरेइरे ॥भ०॥ ५ ॥ कीधुं वज्रमय मृतिकानु श्रीनेमिनाथर्नु बिबरे ॥ परम भावसुं पूजे वासव दश सागर अविलं. बरे ॥भ० ६॥ नेमिनाथना त्रण कल्पाणक रैवत गिरीवर जाणीरे । सेख आयु आपण पूलने सा प्रतिमा तिहां आणीरे ॥ भ० ॥ ७॥ गिरिगंधर्वना चैत्य मनोहरः गर्भ गेहनिपावरेः सोवन रत्न मणीमय मूर्तिः तिणकार तिहां ठावेरे ।। भ० ८ ॥ कंचन बलाणक नाम निपाव्यु भुवनति पागल साररे ॥ बज्रमय मृतिका सामुरति त्यांथापि मनोहाररेः ।।भ० ॥९॥ सोहरि नेमिनाथने वारे हुवो नृप पुण्य साररे नेम मुखे पुरव भव समरी पोतो गढ गिरनारे ॥ भ ॥ १० ॥ तिहां निज कृत्य जीन प्रतिमा पूजी मुतने सांपी राज्यरे नेमिपासे संजम व्रत पाळी साधु संघलं काजरे ॥ भ० ॥ ११॥ ए रेवत तिरथ मुल उत्पत्ती पुरव पुरषे भाखीरे ॥ वली शेजय Aho! Shrutgyanam
SR No.034195
Book TitleGirnar Galp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherHansvijay Free Jain Library
Publication Year1921
Total Pages154
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy