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________________ धातुत्पत्तिः मियनाहि वीणओ हुइ पण तोला जाम चम्म सह तुल्लो । तस्सकणु वार विसुवा चम्मो विसुवट्ठ उद्देसो ||५३ || मियनाहि उण्हमहुरं कडुयं तिक्खं कसायसुगंधं । दुग्गंधि छद्दि तावं तियदोसहरं च सुसणेहं ॥ ५४ ॥ इति मृगनाभी कत्थूरिका: । कसमीरि जडि केसरि देसे हुइ कुंकुमं सुगन्ध वरं । वीस वारट्ठ विसुवा पण आदण हुरुमयस्स भवं ।। ५५॥ इति कुंकुमम् । मुर मास कुट्ठ वालय नह चंदण अगर मुत्थ छल्लीरं । सिल्हारस खंडजुयं सम मिस्स दहंग वर धूपं ॥ ५६ ॥ इति धूपः कपूर सुरहिवासिय चन्दणसंभूय परम सिय वासा । मासीवालय संभव कत्थूरिय वासिया सामा ।। ५७ ।। इति वास: L इति ठक्कुर फेरू विरचिते धातोत्पत्तिकरणीविधिः समाप्ता ॥। श्री विक्रमादित्ये संवत् १४०३ वर्षे फागुण सु० ८ चन्द्रवासरे मृगसिर नक्षत्रे लिखितम्। सा० भावदेवाङ्गज पुरिसड । श्रात्मवाचन पठनार्थे सुभमस्तु । ५३. मृगनाभि जब भली प्रकार परिपक्व - पुष्ट या पीन हो तो चमड़े सहित वजन पाँच तोला होता है । उसके कण बारह बिसवा और चर्म - चमड़ा आठ बिसवा होता है । ५४. मृगनाभि उष्ण, मधुर, कटुक, तीखी, कषैली एवं सुगन्धयुक्त होती है । दुर्गन्ध, छर्दि, ताप को दूर करती है और त्रिदोषहर एवं सुस्निग्ध है । कुंकुम : ५५. काश्मीर देश, जवड़ि और केसरिदेश (मध्य एसिया) में केसर पर्वत में कुंकुम सुगन्धित अच्छी होती है जो शुद्धि में क्रमशः बीस, बारह, आठ बिसवा होती है। अदन ओर हुरमुज की केसर पांच बिसवा होती है. । धूप :-- ५६. मुर, जठामासी, कूठ, बालक (बाल छड़), नख, चंदन, अगर, मोत्या, छल्लर, सिल्हारस, इनमें बराबर खांड मिलाने से उत्तम दशाङ्ग धूप होता है । वास :-- ५७. कर्पूर को सुगन्धि से वासित, चन्दन से परम श्वेत वास बनता है। लेकिन जटामासी और बालक को कस्तूरी से वासित किया जाय तो काली वास बनेगा । श्री ठाकुर फेरू विरचित 'घातोत्पत्ति करणी विधि' समाप्त हुई श्री विक्रमादित्य संवत् १४०३ वर्ष फाल्गुन सुदी ८ सोमवार मृगशिरा नक्षत्र में लिखित सा० भावदेव के पुत्र पुरिसड़ ने अपने वाचने-पढ़ने के लिये लिखी । शुभमस्तु । Aho! Shrutgyanam
SR No.034194
Book TitleDravya Pariksha Aur Dhatutpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakkar Feru, Bhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Jain Shastra Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1976
Total Pages80
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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