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________________ पावत्पत्तिः अइकढिण गवलवन्नं मझे कसिणं सरुक्ख गरुयं च । उण्हं घसिय सुयंचं वाहे सिमिसिमइ अगरवरं ॥४६॥ इत्यगरम् मलयगिरि पव्वयंमि सिरिचंदणतरुवरं च अहिनिलयं । अइसीयलं सुबंधं तग्गंधे सयल वण गंधं ॥४७॥ सिरिचंदणु तह चंदणु नीलवई सूकडिस्स जाइ तियं । तह य मलिन्दी कउही वव्वरु इय चंदणं छविहं ॥४८।। वीसं वारटु इगं तिहाउ पा विसुव चंदणं सेरं । पण तिय दु पाउ टंका जइथल चउतिनि कमि मुल्लं ॥४९॥ सिरिचंदणस्स चिण्हं वन्ने पीयं च घसिय रत्ताभं । साए कडयं सीयं सगंठि संताव नासयरं ।।५।। इति चन्दनम्। नयवाल-कासमीरा कामख्या मिय चरन्ति सुकमेण । मासी मुत्थगठि उनं कत्थूरिय अरुण पीयघणा ।।५१।। नयवाला-कासमीरे मियनाही हवइ वीस विसुवा य । पंचि उरमाइ पव्वय संभूय दहट्ट जाणेह ।।५२।। ४६. बगर जंगली भैंसों के रंग का अति कठिन बीच में कृष्ण, भारी और उष्ण होता है। घिसने पर सुगंधी देता है । अग्नि में जलाने पर सिमसिम शब्द करता है। चंदन : ४७ मलयगिरि पर्वत के ऊपर श्रीचंदन के वृक्ष होते है और वहाँ साँपों का निवास है। वे अत्यन्त शीतल और सुगंधित है। उनकी सुगंध से समूचा वन सुगंधित हो जाता है। ४८. श्रीचंदन, नोलवइ, सूकड़ ये चंदन को तीन जातियाँ हैं। और भी मलिन्दी, कउही, बबरू ये कुल छ: प्रकार की जातियाँ चन्दन की हैं। ४९. बीस, बारह, आठ, एक, त्रिभाग (१), और चौथाई (१) विसवा वाले वंदन के एक सेर तोल पर पाँच, तीन, दो, पाव टंका और चार, तीन जीथल (एक प्रकार का सिक्का) क्रमशः मूल्य है। ५०. श्रीचन्दन का लक्षण --वर्ण पीला, घिसने से रक्ताभ, स्वाद में कडुआ, शीतल, गांठ सहित (? रहित). सन्ताप को नाश करने वाला है। कस्तूरिका : ५१. नेपाल, काश्मीर, कामरूप देशों में क्रमशः मृग विचरण करते रहते है। जटामासी, मुस्तग के साथ कस्तुरी आती है और लाल-पीली और घनीभूत--जमी हुई होती है। ५.. नेपाल, काश्मीर की कस्तुरी बीम विसवा शुद्ध होती है। एवं पंचिउरम् (?) आदि पर्वत में उत्पन्न दस-आठ जानना। Aho! Shrutgyanam
SR No.034194
Book TitleDravya Pariksha Aur Dhatutpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakkar Feru, Bhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Jain Shastra Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1976
Total Pages80
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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