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________________ २० द्रव्यपरीक्षा तत्तो करेवि कुट्टिय मिज्ज घट्टेइ तईय सुमलं । हव दुभामिस्स दल तस्साओ अहुयं कुञ्जा ॥२७॥ नीसरइ सयल रुप्पे सीसं तंबं च जाइ सरडि महे। साखरड पुरा 'धमिज्जर पिहू पिहू नौसरहि दुग्नेवि ||२६|| कारियो एवं कीरइ तस्साउ तंत्र सह करणयं । नीसरद्द तस्स चिप्पं हुई सीसं खरडि मज्झाओं ॥ २९ ॥ ॥ इति मिश्रदल शोचना ॥ कज्जलिय मूसि धूरिय ठोपाल नियारस्स हम कणं । सोहमग फक्क सज्जिय दसंग जुय कढिय हवइ दलं ||३०|| ॥ इति कण चूर्ण शोधना || चउ भाय अमल तंबय वर तित्तल सोल भाय सह कढियं । इसं कायव्वं रूप्पस्स विसोव कररणत्थे ॥ ३१ ॥ कर चमन करने आग में जलाने से उसका मलांश पट जाता है। सीसा या मैल रात में चला जाता है । और दोनों का मिश्रदल हो जाता है, उसका अड्डय करना चाहिए । २८. चांदी सब निकल जाती है, सीसा और तांबा खरड़ में चला जाता है। उस खरड़ को फिर घमन करने— जलाने से तांबा और सीसा दोनों पृथक्-पृथक् निकल जाते हैं । २. काइरिय ( कुकरा) की भी इसी प्रकार जलाने की क्रिया करना उससे सोना और तांबा साथ में मिला हुआ निकलेगा। उनको बीच होगी, सोसा सरडि में चला जायगा । मिदल शोधनविधि समाप्त हुई। अय = अड्डा, उसके ऊपर बर्तन में कोयले भर कर उसकी पैदी के छेद से मिश्रदन जो भी सलोनी में हो वह नीचे गिर जाता है। उस अड्डे में चांदी निकाली जाती है। धातूत्पत्ति प्रकरण में रांगे की धातु को कूट कर कोमंस चूर्ण के साथ धमन करने पर कामी होती है जिसका वर्णन १४ वीं गाथा में देखिए : रंगस्स धाडु कुट्टिवि करिज कोमंस चुष्ण सर्पि धमिय निसरई जं तं पुण गालिय कंविया होंति ॥ १४ ॥ ३०. कजलिय कानी मूस में यूरिय, तोपाल और नियार के सूक्ष्म कणों (खरड़ या राख में मिली हुई चांदी) को सुहागा ओर सज्जी का चूर्ण दशमांश मिलाकर गलाने से दल बन जाता है । अर्थात् एकमन में चार सेर चूर्ण देना चाहिए। ३१. शुद्ध तांबा चार भाग और शुद्ध पोतल सोलह भाग को गला कर चाँदी का विसवा बनाने के लिए रोस तैयार करना। Aho! Shrutgyanam
SR No.034194
Book TitleDravya Pariksha Aur Dhatutpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakkar Feru, Bhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Jain Shastra Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1976
Total Pages80
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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