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________________ १६ द्रव्यपरीक्षा परपुन दहग्गि प (इ?) ए भित्ति समं हवइ तइय चासणियं । टंकाण चक्कलीयं गहिज्जइ य कणय चासणियं ।।२३।। ।। इति सुवर्णशोधना चासनिका च ॥ मेलगइ रुप्प विसुवा दह तेरह सोल ठार उणवीसा। पंच उण चउण तिउणं विउणं सम सोसयं दिज्जा ॥२४॥ सयल कुदव्वं गच्छइ खरडितरि रहइ सेस रुप्पवरं । तं पुरण दिवड्ड सीसइ सोहिय हुइ वीस विसुव धुवं ।।२५।। ॥ इति रुप्प सोधना ।। तुलिय सलूणीयानो अड्डाइ गुणीय खगडि रुप्पस्स। ववि मेलि पिडिय करिज्ज कोमंस चुन्न सहा ॥२६॥ मासा भित्ति सोने के साथ जलाने से जो का तेरह विसुवा घटेगा-यह दूसरी चासनी का अन्तर होगा। २३. तीसरी चासनी में भित्ति कनक के साथ चिप्प को अग्नि में परिपर्ण जलाने पर घटेगा नहीं, भित्ति कनक के बराबर ही पूरा होगा। सोने की चासनी बनाने में एक-एक टांक (४ मासा) के चकलिए लेना चाहिए। सोना शुद्ध करने की चासनी समाप्त हुई। कल्लर = रेह या नोनी मिट्टी। कणय चिप्पय % सोने की चीप, पन्ना, पत्तर या वर्क बनाना। सफेद खडिया + नमक + रेह-यही मसाला सलोनी है। आइने अकबरी में शोरानमक + कच्ची ईंटों का बराबर चूरा बतलाया है। पिजर-मिश्रित सोना जो तांबे के साथ तीन तीन बार जलाने के बाद किया बंध जाय वह पांच वान का होता है। काइरिया को आइन-ए-अकबरी में कुकरा बतलाया है। २४. दस, तेरह, सोलह, अठारह, उन्नीस विसुजा मिलावटी चाँदी के साथ पांचगुना, चौगुना, तीनगुना दुगुना और बरावर सीसा देना। अर्थात् १० विसवा में पांच गुना १३ विसवा में चौगुना, १६ विसवा में तिगुना १८ विसवा में दुगना, ११ विसवा में बराबर सीसा मिलाना चाहिए। २५. सब कुद्रव्य (मिलावट) खरड़ में चला जाता है. अच्छी चाँदी बच जातो है । उसे फिर ड्योढे सीसे के साथ मिला कर सोधने से बीस विसवा शुद्ध चाँदी हो जाती है। चाँदी सोधना समाप्त हुआ। २६.२७. तोली हुई सलोनी (खाक खालिस) को उससे ढाई गुनी चांदी की खरड़ के साथ मिलाकर कोमंस-चूर्ण के साथ बांटकर पिंडा बांधलो। इन पिंडों को कूटकर तोड़ Aho! Shrutgyanam
SR No.034194
Book TitleDravya Pariksha Aur Dhatutpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakkar Feru, Bhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Jain Shastra Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1976
Total Pages80
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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