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________________ ( vi ) मिश्रदल शोधन, रौप्यवनमालिका, कनक वनमालिका, स्वर्ण व्यवहार, हास्य, मौल्य, तौल आदि धातु की पूर्व प्रक्रिया का वर्णन ५० गाथा तक किया गया है। इसके बाद मुद्राप्रकरण प्रारम्भ होता है। मुद्रा-प्रकरण में ठक्कुर फेरू ने तत्कालीन प्राप्य मंकड़ों प्रकार की रोप्य मुद्रा, स्वर्ण मुद्रा, त्रिधातु-मिश्रित-मुद्रा, द्विधातु मुद्रा, खुरासानी मुद्रा, अठनारी मुद्रा, गूर्जरी मुद्रा, मालवी मुद्रा, नलपुर मुद्रा, चंदेरिकापुर मुद्रा, जालंधरी मुद्रा और दिल्ली मुद्रा में पहले तोमर राजाओं की और वाद में ५५ प्रकार की तत्कालीन मुसलमानी मुद्राओं का स्वरूप देकर अलाउद्दीन सुलतान आदि की विविध मुद्राओं का वर्णन किया है। फिर सोना, चाँदी और ताँबे की अनेक मुद्राओं का स्वरूप वताया गया है। दूसरी पुस्तक “धातूत्पत्ति" है जो कुल ५७ गाथाओं में समाप्त होती है । इस में मंगलाचरण का अभाव है जवकि ठक्कुर फेरू के सभी ग्रन्थ मंगलाचरण से प्रारम्भ होते हैं। इस कृति में रचयिता ने न तो कहीं अपना नाम गाथाओं में दिया है और न रचनाकाल ही। पर सं० १४०३ की पुष्पिका के अनुसार ठक्कर फेरू हो इस पुस्तक के रचयिता हैं। अनुमानत: लेखक ने 'द्रव्यपरोक्षा' के परिशिष्ट के रूप में इसे लिखा। संवत १३७५ में 'द्रव्यपरीक्षा' लिखने के साथ ही इसकी रचना हुई। इसलिए दोनों पुस्तकों को क साथ प्रकाशित करने का निर्णय पाठकों को समीचीन लगेगा। ___ इसमें पीतल, ताँवा, सीसा, राँगा, काँसा, पारा, हिंगुलु और सिन्दूर का स्वरूप २७ गाथाओं तक बताकर कपूर, अगर, चन्दन, मृगनाभि कस्तूरी, कुंकुम तथा धूप के साथ-साथ दक्षिणावर्त शंख, रूद्राक्ष, शालग्राम आदि के दिव्य प्रभाव का परिचय कराया गया है । "द्रव्यपरोक्षा" और "धातूत्पत्ति” को विद्वज्जगत् के समक्ष उपस्थित करते हुए मुझे अत्यन्त हर्ष और सन्तोष का अनुभव हो रहा है। यदि इनसे गम्भीर अध्ययन और शोध-कार्य में लगे व्यक्तियों को कुछ भो लाभ हो सका तो संस्थान अपने उद्देश्य में सफल होगा। पुस्तकों की सुन्दर और आकर्षक छपाई के लिए तारा प्रिंटिंग प्रेस, वाराणसी के व्यवस्थापकों को धन्यवाद दिए विना मैं नहीं रह सकता। अपने सहयोगियों को भी उनके परामर्श और सहयोग के लिए मैं धन्यवाद देता हूँ। नागेन्द्र प्रसाद निदेशक प्राकृत जैन शास्त्र एवं अ संस्थान, वैशाली। Aho! Shrutgyanam
SR No.034194
Book TitleDravya Pariksha Aur Dhatutpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakkar Feru, Bhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Jain Shastra Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1976
Total Pages80
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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