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________________ प्रधान सम्पादकीय लगभग तीस वर्ष पूर्व णोधप्रेमी था अगरचंद नाहटा पोर भंवरलाल नाहटा ने कलकत्ते के एक जैन ज्ञानभण्डार में अन्य नाम (माग कोमदी गणिज्योतिर) से अभिहित छ: सौ वर्ष पुरानी पाण्डुलिपि को खोज निकाला और उसका प्रेस कापियां तैयार कर पुरातत्त्वाचार्य मुनि जिनविजय जी के पाम प्रकाशनार्थ भेना। वे मूल ग्रन्थ सन् १९६१ में "रत्नपरोक्षादि मप्तग्रन्थ संग्रह" नाम मे "गजस्थानप्राच्यविद्याप्रतिष्ठान", जोधपुर, द्वारा प्रकाशित हुए। इसमें (१) रत्नपरीक्षा, (२) द्रव्यपरीक्षा, (३) धातूत्पत्ति, (४) ज्योतिषसार, (५) गणितमार, (६) वास्तुसार, (७) खरतरगच्छ युगप्रवान चतुष्पदिका-ये मात ग्रन्थ थे। इनमे से वास्तुसार पं० भगवान दास जैन द्वारा जयपुर से मानुवाद पहले से प्रकाशित था। ये सभी विभिन्न विषयों के महत्त्वपूर्ण प्रतिनिधि ग्रन्थ हैं। इनमें 'ज्योतिषसार' और "गणितसार" के अतिरिक्त अन्य चारों ग्रन्थों का सम्पादन श्री भंवरलाल नाहटा ने कई वर्ष पूर्व किया था। "रत्न परीक्षा' नाहटा ब्रदर्स, कलकत्ताद्वारा सं० २०२० म प्रकाशित हई। "द्रव्यपरीक्षा" और "धानन्यत्ति" के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए इन्हें इस संस्थान से प्रकाशित करने का निर्णय किया गया। ___ इस ग्रन्थ के मूल रचयिता ठक्कुर फेरू एक बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न विद्वान् भोर तत्कालान भारताय शासनतंत्र के उच्चाधिकारी व्यक्ति थे। ये धांधिया गोत्र के परम जैन श्रावक थे। इन्होंने सुलतान अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में दिल्ली राज्य के मंत्रिमण्डल में विभिन्न पदों पर रहकर अपने सक्रिय अनुभव से कुछ ग्रन्थों की रचना को थो। शाहो सजाने के रत्नों के अनुभव के आधार पर जिस प्रकार उन्हान "रत्नपराक्षा” का रचना का उसो प्रकार 'ढिल्लिय टकसाल कज्जठिए" अथात् दिल्ली टकशाल के गवनर के पद पर रह कर प्राचीन अवाचान सभी मुद्रामा का अनुभव प्राप्त कर "द्रयाराक्षा" लिखा। ठाकुर फरू ने अपने भाई अोर पुत्र के ज्ञानार्थ इसकी रचना सं० १३७५ में दिल्ला में का थी। ___ 'द्रव्यपरीक्षा' का केवल भारतीय साहित्य में ही नहीं विश्वसाहित्य में भी महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है। प्राचीन मुद्रा-सिक्कों के सम्बन्ध में यत्र-तत्र स्फट वर्णन प्राचीन साहित्य में भले हा पाये जायँ पर मात सौ वर्ष पूर्व एतद्विषयक स्वतंत्र रूप से रचित यह पुस्तक अपना विशिष्ट महत्त्व रखती है। भारतीय संग्रहालयों में प्राप्त सामग्रो के आधार पर यदि इम ग्रन्थ का विशद विवेचन किया जाय तो प्राचीन मुद्राओं के सम्बन्ध में एक नयी दिशा मिलेगी। इस ग्रन्थ में गाथा १ से ४ तक मंगलाचरण है। तत्पश्चात् चाशनी, चाशनी शोध विधि, उपादान धातुओं में सोसा, चाँदी, सोना आदि को चाशनी, Aho! Shrutgyanam
SR No.034194
Book TitleDravya Pariksha Aur Dhatutpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakkar Feru, Bhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Jain Shastra Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1976
Total Pages80
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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