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________________ इन दोषों के कई भेद हैं (१) लिपि भ्रम ___ ( ३५ ) प्रायः हर लिपि में कुछ वर्ण और अक्षर ऐसे होते हैं, जिनकी आकृति में भेद बहुत कम होता है । ऐसे समान वर्णों या अक्षरों को लिखते समय लिपिकार एक के स्थान पर दूसरे को लिख सकता है। आदर्श में यदि एक वर्ण या अक्षर हो तो लिपिकार उसके स्थान पर उसके समान आकृति वाले व मथवा अक्षर को समझ कर दूसरे को लिख सकता है। किसी लिपि में कौन कौन से वर्ण या अक्षर समान आकृति वाले हैं, इस बात का ज्ञान लिपि विज्ञान के क्षेत्र में सम्मिलित है । परंतु यहां पर इस के कुछ उदाहरण देते हैं— 4 , उदाहरण -- देवनागरी में प, य, घ, ध; ख, रव; भ, म आदि का विपर्यय हो सकता है। जैसे तुलसी - रामायण' १ । २८ । ३ ' भोरि ' मोरि ' । जैनों द्वारा प्रयुक्त देवनागरी में इन अक्षरों में समानता है। - ब और च त्थ और च्द्र थ और घ; ब् और ज्झ, ड, छ, टु, और डू | टोडरमल संपादित महावीर चरित स्थ, च्छ - 'स्वस्थाय' ( १, १ ) के स्थान E प्रति में 'स्वच्छाय' । U ओ, म - 'महादोसो' (२, १३ । १४ ) के स्थान पर B प्रति में 'महादासो' प, य - ' वाक्य निष्यंद' (१, ४) के स्थान पर E, K, B, प्रतियों में '० निष्पद' । , प - 'कल्पापाय' ( ३, ४० ) के स्थान पर Md, Mt, My प्रतियों में कल्याणाय । प्रस्तुत लिपि और भाषा का यथोचित ज्ञान न होने से भी लिपिकार अशुद्धियां कर सकता है, जैसे पंचतंत्र' की Bh प्रति में 'भो विज्ञा ३ ' (२१८, १२, १३ ) के स्थान पर 'भो विल भो बिल भो बिल' मिलता है । इस प्रति के लिपिकार को इस बात का ज्ञान न होगा कि यहां ' ३ ' स्वर के प्लुतत्व का निर्देश करता है और यहां १. तुलसी - रामायण के उदाहरण नागरी प्रचारिणी पत्रिका ४७, १ के आधार पर हैं। २. नाटक के गद्य भाग का संकेत उसके पूर्वापर श्लोकों की संख्या से किया है, जैसे २, १३ । १४ का अर्थ है दूसरा अंक १३ और १४ श्लोकों के बीच का गद्य भाग । हर्टल संपादित पूर्णभद्र का पंचतंत्र | Aho! Shrutgyanam
SR No.034193
Book TitleBharatiya Sampadan Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulraj Jain
PublisherJain Vidya Bhavan
Publication Year1999
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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