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________________ प्रास्ताविक निवेदनम् - बतावी तेनी शुद्धता मात्रज बतावे ! ते वात आ पुस्तक भणनार वर्ग जरुर ध्यानमा राखे ! तेथीज ज्ञानानन्दना व्योमविहारी अने छठा-सातमा गुणठाणानी उंचेरी टेकरीओनी विमळ-वायु-लहरीओनी आबोहवानो आभोग इच्छनार जिज्ञासुओए सदुपयोगज करवो, एटले तेवो काबु धरावता होय, तेओज आमां प्रवेश करे ! एवी म्हारी पण वांचको प्रत्ये विनम्र अभ्यर्थना छे. टीकाकार महर्षिए पण ग्रन्थकारना अभिप्रायोने, घणा घणा ग्रन्थोनुं पर्यालोचन करी सारभूत मतान्तरोने दर्शावी विशेष व्यक्त कर्या छे, अने ते गणकगणना विविध प्रमाणदर्शक अभिप्रायोने प्रतिपादन करी सम्पूर्ण रीते ग्रन्थनी पुष्टी करी छे. जे सविस्तर पाछल परिशिष्ट ब थी समजाशे. आ ग्रन्थ भावनगरथी श्रीयुत् पुरुषोत्तमदास गीगाभाइ तरफथी प्रकाशित थयेला ग्रन्थना आधारे घणाभागे पुनः मुद्रित करावाय छे. विमर्शोमा आवती विगतो अमो स्थलसङ्कोचना कारणे आपी शकतानथी, पण अनुक्रमणिका बहु सरळ होवाथी तेमांथी समजी शकाय तेवु छे. एक सूचना करवी ठीक लागे छे, के नाना अक्षरो लखवामां के वांचवामां आंखोने अहितकर नीवडे छे, एटले आ ग्रन्थ पण एकीटसे, घणो टाइम वांचतां अभ्यासीवर्ग विचार करे ! प्रस्तुत ग्रन्थमाला पासे एबुं मोटुं कोइ फन्ड नथी, छतां उदार सखीगृहस्थोना अने परमोपकारी मुनिमण्डलना सहाराथो अनेक प्रकाशनो प्रस्तुत ग्रन्थमालाए बहार पाड्या छे जेमां तेना अवैतनीक कार्यकर्ता चन्दुलाल जमनादास पण सारो आत्मभोग आपे छे-जेथी संस्थान कार्य अविरत चाले छे अने चालशे! प्रस्तुत ग्रन्थन संशोधन कार्य म्हारा हस्तक बीजा विमर्श लगभगथी आव्यु, तेमां पण थोडो वखत तो हुं आ सम्पादनकार्यमां तद्दन अजाण हतो अने नव्य अभ्यासी होवाथी त्रुटियो जरुर रही हशे, अने पछीथी पण ते कार्य म्हारा जेवा अल्पमति माटे भगीरथ गगाय ए नि शङ्क छे. पण न मालुम ए कृपासिन्धु आचार्यदेवेशना प्रभांशोथी चमकता जमणा हाथना हृदयङ्गम आशीर्वादनो सुप्रभाव के जेथी ए म्हारी कार्यनावा बेधडक अने निर्विघ्न रीते पारने चींधी शकी छे, Aho! Shrutgyanam
SR No.034191
Book TitleArambh Siddhi Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Jitendravijay
PublisherLabdhisuri Jain Granthmala
Publication Year1942
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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