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________________ आरम्भ-सिद्धिः -- स्वाध्याय-यज्ञ आदरता साधु या साध्वीगणना उपकार माटे कर्ताए आ ग्रन्थ बनाव्यो छे. तेमज श्रुत पारदर्शी बनवा माटे साधुसमाजने जेटला प्रमाणमां सैद्धान्तिक विषय जरुरी छे, गणितज्ञान जरुरी छे, कर्मव्यवस्था सप्रपञ्च जाणवी जरुरी छे, प्रभुना भक्तिरसमां तल्लीनता मेळववा सङ्गीतनुं लय अने मात्राओनुं ज्ञान सापेक्ष छे, तेटलीज आवश्यकता आ ज्योतिर्विद्यानी छे. जैनागमोमां ते विद्याना स्वतन्त्र मोटा ग्रन्थो छे, जेमा सूर्यप्रज्ञप्तिनापृ. २७१मे गा. २१ मीमां जणाववामां. आव्यु छे के-"मानवाने सुख दुःखना प्रकारो अने तेमां थता फेरफारो, चन्द्र, सूर्य, नक्षत्रो अने महाग्रहोना चार विशेषथी थाय छे. ते सुख दुःख जो के कर्मजनित छे, परंतु दीपकवत् आ ज्योतिर्ग्रन्थ तेनो द्योतक छे. एटले विकसित मानसवाळा साधुसमाजने आ विद्यानुं पठन पाठन उपयोगि छे. जेम बुद्धिशाळो साधुओने काव्यशक्ति लेखनशक्ति तथा वक्तृत्वशक्ति आदि खोलववानी जरुर छे, तेवीज रोते वस्तु-स्तोमना भाविभावने जाणवामां निमित्तभूत आ ज्योतिर्विद्या पण जाणवानी जरुर छे. ते प्राथमिकज्ञानना अभ्यासीवर्ग माटे प्रस्तुत संस्करणनी उपयोगिता विशेषे करी लाभकारी निवडशे ! ! यद्यपि वारनी मान्यतामां, नक्षत्रो नी तारा संख्यामां, यात्रादिमां जोवाना दिग्द्वारकनक्षत्रोमां तथा तेवी अनेक बाबतोमां सूर्यप्रज्ञप्ति-दिनशुद्धि तेम आ ग्रन्थ विगेरेमा समानता देखवामां आवती नथी, जेनुं याथातथ्यतत्त्व केवलीगम्य छे, तोपण आ ग्रन्थमांथी ज्योतिविद्यानो घणोखरोभाग अभ्यासीवर्ग स्वायत्त करी शके छे, ए निर्विवाद छे ! ___ खास करीने ग्रन्थकार एक वात उपर घणोज भार मूके छे ते जणावq जरुरी छे. ते एज छे के, सावद्यक्रियावलम्बी पुरुषो आ ग्रन्थना अनधिकारी छेसाधुवर्गमांथी पण निरवद्य लाभ माटेज आ ग्रन्थनो के ग्रन्थनी पङ्क्तिनो उपयोग करवो. योग्य अने लायकनेज ते भणाववा गुरुओने ग्रन्थकार भलामण करे छे, भणनार माटे पण त्यां सुधी लखे छे, के तेओए एकान्तमा भणवं, के जे सांभळीने कोइ दुरुपयोग न करे. जैनमन्दिरादिना खात विगेरेना मुहूर्त पण, जेम विवाहादिना मुहूर्तों पोतानी मेळे संसारोओ कढावे छे, तेम कढावे ! ज्यारे निरवद्याचारी महाव्रतधारी महानुभावो तो, तेमां गुणदोषविषयक चर्चा करी, दोषो. Aho! Shrutgyanam
SR No.034191
Book TitleArambh Siddhi Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Jitendravijay
PublisherLabdhisuri Jain Granthmala
Publication Year1942
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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