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________________ वि. प्र. ॥ ७ ॥ और ज्योतिषीका पूजन करे, जितनी भूमिमें गृह बनाना हो उतनी भूमिको ॥ ८५ ॥ गृही पुरुष पंचगव्य सर्वोषधिका जल पंचामृत इनसे सींचे और फिर शुद्धिकी कामनासे भूसंस्कारोंको करे ।। ८६ ।। और उस जगह पूर्व सुवर्ण जिसके गर्भ में और फलोंसे युक्त समस्त ॐ धान्यों सहित तथा समस्त गन्ध और सर्वौषधिसहित ॥ ८७ ॥ पुष्पोंसे सुशोभित रक्त जिसका वर्ण वस्त्र जिसके ऊपर लिपटा हो मन्त्रोंसे अभिमंत्रित ऐसे घटका प्रथम स्थापन करके उसमें नवग्रह वरुण ॥ ८८ ॥ पर्वत वन कानन नदी नद कर्णिका और समुद्रोंसहित पृथ्वीका पञ्चगव्यौपधिजलैस्तथा पञ्चामृतेन च । सेचयेच्छुद्धिकामेन भूसंस्कारांश्च कारयेत् ॥ ८६ ॥ तत्र कुम्भं निवेश्यादी हेमगर्भ फलैर्युतम् । सर्वधान्ययुतं सर्वगन्धसर्वोषधैर्युतम् ॥ ८७ ॥ पुष्पान्वितं रक्तवर्णं सर्वत्रं मन्त्रमंत्रितम् । तस्मिन्नावाहयेत्खेटान् वरुणप्रमुखांस्तथा ॥ ८८ ॥ तस्मिन्नावादयेद्भूमिं सशैलवनकाननाम् । नदीनदसमायुक्तां कर्णिकाभिश्च भूषिताम् ॥ ८९ ॥ सागरैर्वेष्टितां तत्र पूजयेत्प्रार्थयेत्ततः । दिक्पालान् कुलदेवीश्च देवान्यक्षांस्तयोरगान् ॥ ९० ॥ बलिं च दत्त्वा विधिवचलायति जपेत्ततः । पऋचं रुद्रजापञ्च कारयेद्विधिपूर्वकम् ॥ ९१ ॥ तस्मिन्संपूजयेद्वास्तुं प्रार्थयेत्पूजयेत्ततः ॥ ॐ नमो भगवते वास्तु पुरुपाय कपिलाय च ॥ ९२ ॥ पृथ्वीधराय देवाय प्रधानपुरुषाय च । सकलगृहप्रासाद पुष्करोद्यानकर्मणि ॥ ९३ ॥ आवाहन करके ॥ ८९ ॥ पूजन करे दिक्पाल कुलुदेवी देव यक्ष और उरग इनकी प्रार्थना कर और बलिको देकर 'जलाय' इस मन्त्रको जपै और षट्टच और रुद्री इनका विधिपूर्वक जप करें ॥९०॥९१॥ फिर उसी घटमें वास्तुकी पूजा और प्रार्थना करें 'ॐ नमो भगवते वास्तुपुरुषाय कपि लाय ॥ ९२ ॥ पृथ्वीधराय देवाय प्रधानपुरुषाय च ' इसप्रकार कहकर नमस्कार करे और कहे कि समय गृह महल पुष्कर उद्यान आदि भा. टी. अ. १ ॥ ७ ॥
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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