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________________ वाणी मद्य चर्म हाड पूले आदि तृण तुष (तुस) सांपकी चर्म अंगार ॥ ७८ ॥ कपास लवण कीच नपुंसक तेल औषध विष्ठा काले अत्र रोगी तेल आदिसे अभ्यक्त ॥ ७९ ॥ पतित जटाधारी उन्मत्त शिरमुण्डाये हुए ( नंगे शिर) इन्धन विराव (खोटा शब्द) इनको तथा पक्षी मृग मनुष्य ॥ ८० ॥ इनके दो भेदोंको, बलती हुई दग्ध तथा जिनमें धूआँ उठ रहाहो उन दिशाओंमें देखता हुआ पुरुष जो गृहप्रवेश करे तो उसका मरण बुद्धिमान मनुष्य कहे और उस भूमिमें दुःख कहे ॥८१॥ जिस मनुष्यको अपशशुन हों उस मनुष्यको दुःख होता है इससे उस घर में कार्पासलवणं पक्की तैलौपधानि च । पुरीषं कृष्णधान्यानि व्याधिताभ्यक्तमेव च ॥ ७९ ॥ पतितो जटिलोन्मत्तौ मुण्डी नग्न शिरस्तथा । इन्धनानि विरावं च द्विपक्षिमृगमानुषम् ॥ ८० ॥ ज्वलिताशासु दग्धासु धूमितासु च पश्यतः । मरणं निर्दिशेत् प्राज्ञस्तत्र शल्यं विनिर्दिशेत् ॥ ८१ ॥ यस्यापशकुन तस्य शल्यं तत्र भवेद्गृहे । तत्र वासं न कुर्वीत गृहं चैव न कारयेत् ॥ ८२ ॥ अथ खननविधिः ॥ ज्योतिश्शास्त्रानुसारेण सुदिने शुभवासरे । सुलने सुमुहूर्ते च सुस्रातः प्राङ्मुखो गृही ॥ ८३ ॥ पूजयेद्गुणनाथञ्च ग्रहांश्च कलशे स्थितान् । परीक्षिते च भूभागे गोमयेनानुलिप्य च ॥ ८४ ॥ तत्र संपूजयेद्विप्रान्दैवज्ञं च तथैव च । यावत्प्रमाणाभूर्याद्या गृहार्थं तावता गृही ॥ ८५ ॥ वास न करे और न ऐसी भूमिमें घर बनावे ॥ ८२ ॥ अब खननकी विधिको कहते हैं कि, ज्योतिःशास्त्र के अनुसार शोभन दिन और शुभ वार सुन्दर लग्न और अच्छे मुहूर्तमें भलीप्रकार स्नान करके गृहस्थी पुरुष पूर्वको मुखकरके बैठे ॥ ८३ ॥ और फिर गणपति कलश के ऊपर स्थापन किये नवग्रह इनका पूजनकरे, फिर पूर्वोक्त प्रकारसे परीक्षा कीहुई उसी पृथ्वी में किसी जगह गौके गोबर से लीपै ॥ ८४ ॥ वह ब्राह्मण
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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