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________________ नामेण मयणसेणो वेसामयणो ति कुंमयारो य । चंडो गोवालो चिय किंविणो दाणंमि चत्तारि ॥ २२ ॥ सीमि य जयच्छी देवी तह सुंदरी दुवे इत्थ । खयरी मयंकरेहा अघडेनिवो दोन्नि तवम्मि ॥ २३ ॥ सिट्टी य धर्मदत्तो बहुबुद्धी नाम मंतिणो पुत्तो । एए दुनि वि कहिया दिता भावणाविस | २४ ॥ नवकारफले भणिओ निवई सोहग्गसुंदरो नाम । कहिओ अणिच्चयाए समुदैदत्तो वणियवृत्त ।। २५ ।। नियमस्स फले मणियो कमलो नामण सिट्टिणो पुत्तो । चउदम कहाणयाई नेयाई समासओ कमसो ॥ २६ ॥ [ पाटणना संघवीना पाडाना ताडपत्रभंडारना डा. नं. ६५ / ४ नी नंबर १ नं प्रति उपरथी ] 19 आ लोकोमां जणावेळी चौद कथाओ पैकी बार ज कथाओ अमने मळी शकी छे. जे अन्यत्र आपली अनुक्रमणिका उपरथी जोई शकाशे. ग्रन्थकार परिचय - उपर प्रन्थ परिचयमां जगावेला पांचमा श्लोक उपरथी आ मन्थना कर्त्ता श्री चन्द्रसूरिना शिष्य छे एटलं ज जाणवा मळे छे, परन्तु तेमना नाम वगेरें संबंधी बीजी कशी ज हकीकत शक्य तपास करवा छतां मी शकी नथी. प्रतिपरिचय - आ मन्थना सम्पादनमां अमे त्रण ताडपत्रनी प्रतिओनो उपयोग कर्यो छे, तेनी A B C एत्री संज्ञा राखी छे. A संज्ञक प्रति-आ प्रति पाटणना संघवीना पाडाना भंडारनी छे. तेनो तत्रत्य जूनो डा नं. २९५ अने नबो डा. नं. ६५ / ४ छे अने पत्र संख्या ७८ छे. आ प्रतिमां शरुआतगां लगभग साठ उपरांत लोक विक्रमसेनचरित्रने अंगे आपेला छे. एमां पहेली कथा सम्यक्त्व उपर धनश्रेष्ठिनी छे तथा छेही चौदमी कथा नियमना फल उपर कमल नामना श्रेष्ठपुत्रनी छे. शरुआतना
SR No.034180
Book TitlePaiakaha Sangaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay, Kantivijay
PublisherVijaydansuri Jain Granthmala
Publication Year1952
Total Pages98
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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