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________________ म मार पयन्ना. d4uT 1514.५३.... थाया में जं नाणे ॥ आया मे दसणे चरित्ते य॥ आया पच्चरकाणे ॥ आया मे संजमे जोगे ॥११॥ मारूं जे ज्ञान ते मारो आत्मा छे, आत्मा तेज मारुं दर्शन अने चारित्र छे, आत्मा तेज पच्चलखाण छ, आत्मा तेज मारूं संजम अने तेज मारो जोग छे ।। ११ ॥ मूल गुण नुत्तर गुण ॥ जे मे नारा हिथा पमाएणं ।। ते सव्वे निंदामि ॥ पडिक्कमे आगमिस्साणं ॥१॥ मूल गुण अने उत्तर गुण जे में प्रमादवडे करी न आराध्या होय ते सर्वने हुँ निद्छ अने आगामीकालने विषे जे थवाना होय तेथी हुँ पाछो रखें, ।। १२॥ कोहं नजि मे का ॥ नचाहमवि कस्सई ॥ एवं अदीण मणसो ॥ अप्पाण मयुसासए ॥१३॥ एकलो हूं ठु माऊं कोइ नथी अने हुँ पण कोइनो नथी एम अदीन चित्तवाळो आत्माने शिक्षा आपे. इक्को नप्पद्यए जीवो ॥ को चेव विवद्यई ॥ कस्स होइ मरणं ॥ इक्को सिद्य नीरन ॥ १४ ॥ 4025-09-24244- -phyadpo-par By-e-593GPre- 2-20p
SR No.034177
Book TitleMurkhshatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj Shravak
PublisherHiralal Hansraj Shravak
Publication Year1926
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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