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________________ ਤੇਲ ਜਾਣੇ $ ਕੇ ਸਵੇਰੇ ਜਾਗ जे मोक्षना मुखने अवगणीने असार मुखर्नु कारण ए, नियाj करे ते पुरुष काचमणिने माटे वैडूर्य रत्नने नाश करे छे ॥ १३८ ॥ पुस्करकय कम्मरकय ॥ समाहि मरणं च बोदिलानो य । एयं पयत्वं ॥ न पणियं तन अनं ॥ १३ ॥ ___ दुःखक्षय अने कर्मक्षय समाधि मरण अने बोधी बीजनो लाभ एटलां वानांनी प्रार्थना करची एटले इच्छवां तेथी बीजु केइ मागवू नहि ।। १३९॥ ननिय नियाण सल्लो ॥ निसिन्नन नियति समिय गुत्तीहिं॥ पंच महन्वय ररकं ॥ कय सिव सुरकं पसादे ॥ १० ॥ नियाण शल्यने त्याग करीने रात्रि भोजनथी निवृति करी पांच समिति ने त्रण गुप्तिए करीने सहित का पंच महाव्रतनी रक्षा करे ते मोक्ष सुखने साधे छे. ॥ १४० ॥ इंदिय विसय पसना ॥ पति संसार सायरे जीवा॥ परिकब चिन्न पस्का ॥ सुसील गुण पेहुण विहुणा ॥ ११ ॥ इंद्रियोना विषयमा आसक्त थएला जीवो सुशील गुण रुप पीछां विनाना अने छेदाएली पांखवाला पक्षी. ओनी पेठे संसार सागरमां पडे छ ॥१४१॥ ਦੀ
SR No.034177
Book TitleMurkhshatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj Shravak
PublisherHiralal Hansraj Shravak
Publication Year1926
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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