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________________ पयत्रा ॥२० 209 2050HReseree5e50-२०६४१55ES-8006202 निस्सलस्सेह महत्वयाई॥भरकम निवण गुणाई॥ नवहमति य ताई। नियाण सलेण मुणियो वि ॥ १५ ॥ शल्य रहित पुरुषने महाव्रतो अखंड होय अने अतिचार रहित होयते महाव्रतोने नियाण शस्यवडे मुनोयो पण उपघात पमाडे छे ॥ १३५ ।। अद राग दोस गपंच ॥ मोदगतं च तंजवे तिविदं। धम्म दीण कुलाई॥ पत्रणं मोद गतं ।। १३६ ॥ ते नियाण शल्य राग गर्भित, द्वेष गर्भित अने मोह गर्भित ए रीते त्रण प्रकार थाय छे धर्मने काने हीण कुलादिकनी प्रार्थना करे ते मोह गभित निया' समज. ॥१३६॥ रागेण गंगदत्तो । दोसेण विस्सनइमाईया ॥ मोदेण चमपिंगल । माईया हुंति दिवंता ॥ १३७ ॥ राग नियाणाने माटे गंगदत्त, अने द्वेष नियाणाने माटे विश्वभूति ( महावीर स्वामिनो जीव ) अने मोह नियाणे चंडपिंगल आदि दृष्टांत प्रसिद्ध छे ॥१३॥ अगणिय जो मोरक सुई ।। कुगर नियाणं असार सुह हेनं ॥ सो कायमणि कएणं ॥ वेरुलिय मणिं पणासे ॥१३॥ wauntiretri
SR No.034177
Book TitleMurkhshatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj Shravak
PublisherHiralal Hansraj Shravak
Publication Year1926
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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