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14606छास्स्स
कामना पाणनो विस्तार छे नेमा वा मृमाक्षीओ (सीओ) नां दृष्टिना कटाक्षने विपे अणजाग्यो पोछे मननो निग्रह जेनो एवो कयो पुरुप सम्यक प्रकारे नाशी जवाने समर्थ थाय छे ॥ १२४ ॥
घण मालानव पुरुन ॥ मंत सुपनहरान वढूति ॥
मोदविसं मदिलान ॥ पालक्क विसं व पुरिसस्त ॥ १५ ॥ अतिशय उंचां अने घणां बादलों वाली एवी मेवपाला जेम हडकवाना विपने वधारे तेम अतिशय उंचा पयोधर (स्तन) वाळी स्त्री पुरुषना मोह विषने वधारे छे ।। १२५ ॥
परिदरसु तन तासिं ॥ दिहिं दिखीविसस्त व अहिस्स ॥
जं रमणि नयण बाण ॥ चरित पाणे विणासंति ॥ १६ ॥ ते माटे ते स्वीओनी दृष्टिने दृष्टिविष सर्पनी दृष्टिनी पेठे तमे त्याग करो केमके स्त्रीनां नेत्र बाण चारिवरूपी प्राणनो नाश करेछे ॥ १२६ ॥
महिला संसग्गीए ॥ अग्गी इव जं च अप्पसारस्स ॥
मयणं व मणो मुणिणो ॥ विदंत सिग्घं चिय विलाइ ॥ १२७॥ स्त्रीनी संगतिथी अल्प सत्त्रवाला मुनिनु पण मन अनिथी जिम मीण ओगली जाय तेनी पेठे स्वरेखर मली जाय छे ॥ १२७ ॥
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