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________________ 5 5veमस्छ6एसससस्न जह मक्कम खणमवि॥ मझलो अछि नसके। तह खणमवि मझो। विसएहि विणा न हो मणो ॥ ४ ॥ जेम मांकडो क्षण मात्र पण निश्चल थइ न शके तेम मन क्षणमात्र पण विषयोना आनंद विना मध्यस्थ न रही शके ।। ८४ ॥ तम्हा स ननिमाणो॥ मण मक्कमन जिणोवएसेण ॥ कानं सुत्त निबो ॥ रामेयबो सुहेकाणे ॥५॥ ते माटे ते उठता मनरुपी मांकडाने जिनना उपदेशवडे दोरीथी वांधेलो करीने शुभ ध्यानने विषे र. माडवो ॥ ८५॥ सूई जहा ससुत्ता ॥ न नस्सइ कय वरंमि पमियावि ॥ जीवो तदा ससुत्तो । न नस्सई गन विसंसारे ॥ ६ ॥ जेम सोय दोरा सहित होय ते. कचरामा परी होय तो पण खोवाइ जाय नहि तेम जीव (अम धान रूपी) दोरा सहित संसारने विषे पडयो होय तो पण नाश पामे नहि ॥ ८६ ॥ संग सिलोगोहिं जवो। जता मरणानं रस्किन राया। पत्तोसुसामन्नं ॥ किं पुण जिरा वुत्न सुत्तेणं ॥ ७ ॥ सामान15SSSSSSSESE - -
SR No.034177
Book TitleMurkhshatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj Shravak
PublisherHiralal Hansraj Shravak
Publication Year1926
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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