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________________ पयनो. ___दर्शन थकी भ्रष्ट ते भ्रष्ट जाणवो सम्यक्त्वधी चुकेलाने मोक्ष नथी, चारित्रथी रहित जीव मुक्ति पाIE मेछे पण ममीकतयी रहित जीव मोक्ष पामता नथी ॥६६॥ ॥१०॥ सुझे सम्मने अविरन वि ॥ अधेश तिवयर नामं ॥ जद आगमेसिनहा ॥ हरिकुख पहु सेणियाईया ॥ ६७ ॥ शुद्ध सकित छते अविरती एवो पण जीव तिर्थकर नाम कर्म उपार्जन करे जेम आगामि कालमांकल्याण थवान छे जेमनुं एवा हरीकुलनो प्रभु एटले कृष्ण महाराज अने श्रेणिक विगेरे राजाओए उपार्जन कयु ॥१७॥ कल्लाण परंपरयं ॥ लहंति जीवा विसुक्ष्सम्मत्ता । सम्म इंसण रयणं ।।नग्घ ससुरा सरे लोए ॥६॥ निर्मल सम्यकत्ववाला एवा जे जीवो ते कल्याणनी परंपराने पामेछे. ( केमके ) सम्यक् दर्शन रूपी रत्न मुर अने असुर लोकने विषे अमुल्य छे ॥ ६८ ॥ तेलुकस्स पहुतं ॥ लड्मवि परिवति कालेणं ॥ सम्मने पुण लहे ॥ अस्कयसुकं लहइ मुकं ॥ ६॥ त्रण लोकनी प्रभुता पामीने काले करीने ते पडेछ. पण सम्यक्त्व पामे छते अक्षय मुखवालु एबु मोक्ष तेने जीव पामेछे ॥ ६९॥ SESSIES RSS Teste Sizesteses estSRISE । एवा जे जीवा ॥ ६८ ॥ कालेणं ।।.
SR No.034177
Book TitleMurkhshatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj Shravak
PublisherHiralal Hansraj Shravak
Publication Year1926
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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