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________________ 155750३४. सुनिया स || मोह मदल्लं सुकम्म निस्सद्धं ॥ दमसु मुणिंद संदोदे || निंदिए इंदिय मइँदे ॥ ए६ ॥ मोहे करीने मोटा अने शुभ कर्मने शल्य समान एवा नियाण शल्यने तुं स्याग कर, अने मुनिंद्रोना समुद्दे निधी छे एवा इंद्रियरूपी मृगेंद्राने तुं दम ॥ ५६ ॥ fare सुदावाए । विश्न्न निरयाइ दारुणावाए ॥ हसु कसायपिसाए ॥ विसय तिसाए लय सहाए ॥ ५७ ॥ निर्वाण सुखने अंतराय भूत अने नरकादिकने विषे भयंकर पात जेथी थाय छे एवा कषायरुपी पिशाचने हण, जे विषय तृष्णाना हमेशां सखाइआ छे ॥ ५७ ॥ काले पहुते ॥ सामन्त्रे सावसेसिए इन्हिं ॥ मोद महारिन वारण | असिलहिं सुरासु प्रणुसहिं ॥ ५८ ॥ काल नहीं पहोंचते अने हमणां थोडं चारित्र बाकी रहे छते मोह रूपी महा बैरीने विदारखाने माटे स्वदूग अने लाठी (डांग ) समान हित शिक्षाने तुं सांभल ॥ ५८ ॥ संसार मूल बीयं ॥ मिछत्नं सवदा विवछेद || संमने दढचित्तो ॥ होसु नमुक्कार कुसलो म ॥ ५ ॥ KANNAKAKARAAN AMANANMANA
SR No.034177
Book TitleMurkhshatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj Shravak
PublisherHiralal Hansraj Shravak
Publication Year1926
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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