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________________ M सव्वे श्रवराहप || खामेमि श्रहं खमेन मे जयवं ॥ श्रमवि खामेमि सुझे ॥ गुण संघायस्स संघस्स ॥ ४५ ॥ सत्रें मारा अपराधना पद ( वांक), हे भगवन् मने खमो अने हुं पण गुणना समुह वाला एवा संघने शुद्ध बहने खमाकुंछु ॥ ४९ ॥ इय वंद खामण गरिददिं ॥ जवसय समधियं कम्मं ॥ चवणे खोण खयं, मिगावइ राइपत्तिव्व ॥ ५० ॥ आ रीते वंदन, खामणां स्व निंदाओवडे सो भवनुं उपार्जे कर्म एक क्षण मात्रमा मृगावती राणीनी पेठे क्षय करे ॥ ५० ॥ ग्रह तस्स मदेव्वयं सुधियस्त || जिस वय जाविय म • पच्चरकायादारस्स || तिव्व संवेग सुदयस्स ॥ ५१ ॥ हवे ते (अणशण करनार ) महाव्रतने विषे निश्चल रहेलाने अने जिन वचनवडे भावित थयुंछे मन एवाने, पचख्या के आहार जेणे एवाने, अने तिव्र संवेगवडे करीने मनोहर एवाने ॥ ५१ ॥ आराइल बाजान ॥ कयच मप्पारायं मांतस्स ॥ कलुस कल तर लिहिं ॥ अणुसहि देइ गणिवसजो ॥ ५१ ॥ 11 ast fr ARMAskeflète SKAANIKAS
SR No.034177
Book TitleMurkhshatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj Shravak
PublisherHiralal Hansraj Shravak
Publication Year1926
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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