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________________ 18BECAMERAMANAस्यामा शीलवाळाए पण मरतूं पडेछ, शीलरहित माणसे पण अवश्य मरवू पहेछे, बनेने पण निश्चय करी पर|वानुं छे, तो शील सहित मरतुं ए निचे सुंदर छे ॥ १५ ॥ नास्स देसणस्त य ॥ सम्मत्तस्त य चरित्न जुत्तस्स ॥ जो कादि नवनगं॥ संसारा सो विमुचिदिसि ॥६६॥ जे कोइ चारित्र सहित ज्ञानमां दर्शनमा अने सम्यक्त्वमा सारधानपणुं करशे ते विशेषे करी संसारथकी मूकाशे ॥ ६६ ॥ चिरनसिप बनयारी॥ पफ्फोमेऊण सेसयं कम्मं ॥ - अणुपुबीइ विसुक्षे॥ग सिधिभकिलेसो ॥७॥ पणा काळ सेव्युं छे ब्रह्मचर्य जेणे ते बाकीना कर्मनो नाश करीने तथा सर्व क्लेशनो नाश करीने अनुक्रमे शुद्ध थयो छतो सिद्धिमा जाय ॥ ६ ॥ निक्कसायस्स दंतस्स ॥ सूरस्स ववसाइणो॥ संसार परित्नोअस्स | पचरकाणं सुदं नवे ॥३०॥ कपाय रहित, दान्त, (पांच इंद्रियो अने छहा मनने दमन करनार,) शुरवीर अने उद्यमवंत तथा संसारथी भय भ्रांत यएलो एवार्नु पचरूखाण कहुं होय ॥ ६८ ॥ सिAिARA रसिया
SR No.034177
Book TitleMurkhshatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj Shravak
PublisherHiralal Hansraj Shravak
Publication Year1926
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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