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________________ मा०प० प्रयको समणु विपद पढमं ॥ बी सब संजन मिति॥ सर्वच, वोसिरामि ॥ एवं लसिय समासेणं ॥३५॥ मथम तो हुं मायू , बीजु सर्व पदार्थोमां संपमवाली बुं ( तेथी) हुबळी सर्वने चोसिराथुएं, आ संसे- करी कई सई अलपुर। जिणवयस सुजासिधे अमयमा गुदिन भुगश्मग्गो ॥ नाई मरपस्स बोहेमि ॥६॥ जिनेश्वर भगवानन्य आयममां कडेल, अमृत सरखं अने पूर्व नहि पामेलं एवं ( आत्मतत्त) दुपाम्यो भने सिद्धि गतिनों मार्ग प्राण को तो हुँ मरगयी पीतो नयी ॥ ३ ॥ धीरेण.वि मरियन ॥ कान रिसेण वि अवस्स मरियो । दं हु मरियो | वरे सुधीरत्तणे मरिठं ॥ ६॥ धीर पुरुषे पण मर पडेछ, बने कायर पुरुष पण अवश्य परच पडेछ, बनेने पण निश्चये करी मरवातुंगे, तो धीरपणे मर र निश्चे सुंदर :: : !! -सिलेण विमरियावं । निस्सीलेंणवि अवस्स मरियो । बुन्दंप हु मरियो ॥ वर खुसीलनणे मरित्रं ।। ६५॥ SENSEta
SR No.034177
Book TitleMurkhshatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj Shravak
PublisherHiralal Hansraj Shravak
Publication Year1926
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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