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________________ नरपतिए तव हा जणी, बखि हवो हरख अपार॥सुखजर राज्य करे सदा, अवर कथा कई सार ॥ १५ ॥ ढाल सतरमी. ___ यतनीनी देशी. | हस्तीनागपुर वन मांहे, अकंपनाचार्य श्राव्या त्यांहे ॥ सातसें मुनिवर ने साथे, विद्या तणी बहु आये ॥१॥ बलि मंत्री तेने देखी, वयर जावे पूव लेखी ॥ पदमरथ राय पासे आवी, विनति करे तिहां समजावी ॥२॥ वर श्रापो श्रमने आज, |दिवस सातनुं आपो राज ॥ काज सारो श्रमारु प्रजुजी, तुम विना कोण बीजो| विजुजी ॥३॥ राजाए तव वर आप्यो, राजनार तेहनो थाप्यो ॥ पापी कूड कपट || मन मांहीं, धरी सहीये क्रोधातुर तांहीं ॥४॥ वाड करी मुनिने वींच्या, साधुने घणुंए थाषेव्या ॥ नरमेध जगन जाग मांड्यो, जति कारण बीजो काम बांड्यो ॥५॥ जलचर ने थलचर जीव, ननचर ते पाता रिव ॥ वेद पाठक ब्राह्मण श्राव्या, घणुं| उजमाल थइ मन जाव्या ॥६॥ जीव हणवा वामव मलीया, हवन करवा हरखमां| नलीया ॥ चरम अस्थि ले शिर नाखे, मुनि उपर सहु मली धांखे ॥ ७॥ एवं
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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