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________________ ररे॥सा॥१॥ मनोवेग कहे सांजलो, पवनवेग तुमे साररेसा॥ नारायणउत्पत्ति कडं, जैनशासननो विचाररे ॥सा॥१३॥ सुखम सुखम पहेला जएयो, बीजो सुखमज कालरे| ॥साासुखम उखम त्रीजो सुण्यो, उखम सुखम सुविशालरे॥सा॥१४॥पांचमो उखम दोहीलो, दुखम मुखम विकरालरे ॥सा॥ नाम तेहवां परिणाम , चडतो पम्तो ने कालरे ॥सा॥ १५॥ सुखम उखम अंते अवतर्या, आदिनाथ नवताररे॥सा॥ तेहनो पुत्र जरतेसरो, प्रथम जिन चक्री ते साररे ॥सा॥ १६ ॥चोथे काले त्रेवीश हुवा, तीर्थकर गुणधाररे ॥ सा॥ अजितादि ए जाणजो, महावीर अंतिम साररे॥सा॥ १७ ॥ जरतादिक ब्रह्मदत्त लगे, चक्री हादश जाणरे ॥ सा॥नव नारायण निरमला, त्रिपिष्ट श्रादि सुख खाणरे ॥ सा ॥ १७ ॥ हयग्रीव श्रादे जरासंध ये, पर्यंत नव ए होयरे ॥ सा॥प्रतिनारायण चक्रधरा, श्रढार अधोगति जोयरे॥ सा ॥१॥ विजय हलधर | धूरे कह्यो, अंते महापद्म नामरे ॥सा॥ नव वलजा बलवंत नला, ऊर्ध्वगामी अनि 100२५॥ रामरे॥ सा० ॥२०॥ त्रिषष्टि पुरुष ए रुयडा, जव्य जीव नवताररे ॥ सा० ॥ पन्नरमी Vढाल पहेला खंगनी, नेमविजय निरधाररे॥ सा ॥१॥
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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