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________________ खंग ? र्मिपरीबेग त्यांहिं ॥ रास परोणो कर ग्रही, हवे रथ खेडे श्रांहि ॥४॥ कौरव सेना उपरे, मार पमी तेणी वार ॥ पांच पांमव जय पामीया, जगमा जस विस्तार ॥ ५॥ जीती। निज घर श्रावीया, पहोता निज निज गम ॥ कथा पुराणे ते कही, मनोवेग कहे तमाम ॥६॥ ब्राह्मण सहुको सांजलो, पांडव पूत मोरार ॥ गामीत करम को सही, नीच करम श्राचार ॥ ७॥ नारायण रुखमणी बने, जोतरी रथ पुरवासाय ॥ चाबक |चोडे तेहने, कीधां कांणां ताय ॥ ७॥ विश्वलोक विहल तणां, सुर झषि पूजे पाय ॥ रथ खेडे ते केम जणी, विप्र विचारो काय ॥ ए॥ ढाल अगीरमी. श्मर आंबा थांबलीरे, श्मर दामिम धाख-ए देशी. विप्र विचारो तुमे जलारे, विष्णु विगोव्यो अपार ॥ वेद पुराणे जे कयुरे, सत्य वचन कहुँ सार॥ सजन जन मनशुं करोरे विचार ॥ए आंकणी ॥१॥ जश्मांगद ऋषि तप करेरे, ईश्वरनुं धरे ध्यान ॥ पंचाग्नि साधी खरीरे, बार वरस गयां मान स॥ वृषन चड्या ईश उमीयारे, मारग दीगे ताम ॥ गौरी पूढे ईश्वर नणीरे, ए ध्याये केहy नाम ॥ स० ॥ ३ ॥ महादेव कहे सुण नारी तुंरे, मुजने ध्याये सहु लोक ॥ ॥१७॥
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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