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________________ खंग ? राज पाले गुण धार ॥२॥र्योधन राज करे तिहां, कौरव शत नाइ साथ ॥ राज्य- मष आणे घणा, पांमवशुं लीए बाथ ॥ ३॥ एक वार कूम कपटे करी, जुवटे हार्यों १६ ॥ देश ॥ देशोटो बार वरस तणो, चाल्या धरी हिजवेष ॥४॥वैराट देशमां जश् रह्या, वैराट तणी करे सेव ॥ गोकुल वास्यो कौरवे, संग्राम कीधो तिणे खेव ॥५॥ पांमव द्वारिकापुरी गया, नारायण नेव्या तेह ॥ कृष्णे काज विमासीठं, मान दश राख्या गेह ॥ ६ ॥ स्नेह धरी परणावीया, सुजमा अर्जुन ताम ॥ सुख जोगवे पांमव | तिहां, सेव करे कृष्ण राम ॥७॥ अरजुने तव विनवीया, दामोदर ते राय ॥ काज | करो तुम श्रम तणां, भूतपणुं धरी काय ॥ ७ ॥ हस्तीनागपुर जाय, जांजवो कौरव | धीश ॥नगर पांच श्रापुं तुमने, श्रानंद धरी नामो शीश ॥ए॥ सेवावरती थ रहो, जाइ कहो तुम देव ॥ कर जोमी कहे त्रीकमो, काम करशुं श्रमे देव ॥१॥तपणुं लश् चालीया, हस्तीनागपुर पोत्या कान ॥ दासीपुत्र विफुर घरे, कृष्ण गया दीधा । मान ॥ ११॥ श्रादर तेणे दीधा घणा, शाक ने नोजन दीध ॥ अवसर जो नेटणुं, र्योधन राजानुं कीध ॥ १५ ॥ कौरवे मान दीधां घणां, पूब्यु केम श्राव्या कान ॥ नारायण तव बोलीया, सुणो वयण श्रमारां तान ॥१३॥ त थ थमे श्रावीया,
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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