SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मोकार ॥ कानो कर काठी धरी, गले गुंजानो हार ॥ मस्तके फुल केशु तणां, खांधे alकामल सार ॥३॥ वंसी वाये मुख रुडो, महुयर करे सुनाद ॥ नारायण गोवालीयो, गाइ करे वली साद ॥ ४ ॥ गोकुल गौलणीशुं रमे, गाढे तेहज ढोर ॥ रुडो त्रिजुवन नाथ ते, नीच करम करे घोर ॥ ५॥ राजकुंवर रुमा अमे, नीच करम करूं जेम ॥ विश्वनाथ वली वीउलो, नीच करम कीयां तेम ॥ ६॥ सामान्य करम जे आचरे, ते केम कहीए देव ॥ खोटुं के साचुं कहो, विप्र विचारो देव ॥ ७ ॥ तव ते ब्राह्मण |y बोलीया, सत्य वचन जे होय ॥ उत्तर दीधो जाय नहीं, वेद पुराणे सोय ॥ ७॥ श्रमे ते (कहो) किम लोपीए, तुमने करुं प्रणाम ॥ घटतां वचन वली कह्यां, गुणह तणां तुम गम ॥ ए॥ ढाल दशमी. काबिलरो पाणी लागणो, काबिल मत चाल्यो-ए देशी. मनोवेग बोले इस्युं, पुराणनी कहुँ वातो ॥ हस्तीनागपुर जाणीए, पांमव पांच | विख्यातो ॥१॥ जीम युधिष्टर अर्जुन, सहदेव नकुल कुमार॥ पांच नाश् सुत्नट जला, १ चणोगी.
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy