SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्मपरी खंग ॥१६॥ करशो सुजाण ॥ शैव सांख्य बौध जैनना, जे जाणो ते बोलो वाण ॥जा ॥५॥ कोण देश कोण तुम गाम , कोण जातिना कोण गोर ॥ कोण कारण इहां श्रावीया, सत्य कहो मामीने धूर ॥ जाण ॥६॥ जोगी रूपे खगपति ते लणे, सांजलो हिजवर तुमे सार ॥ वाद विवाद अमे जाणुं नहीं , केवा कहीए शास्त्र प्रकार ॥ ना० ॥ ॥ श्रापणपो वेष अमे धर्यो, गुरु नवि दीगे कोय जोय ॥ गाम गम कुल जाति हुँ कहुँ, सुणजो हिजवर वातो सोय॥ ना॥७॥ बहा खंग तण। ए में कही, पहेली ढाल ए सोय ॥ रंगविजयनो शिष्य ते एम कहे, नेमनी आशा पूरण होय ॥y ना०॥ ए॥ ढाल बीजी. - श्रा चित्रशाली था सुख सज्यारे-ए देशी. | गुर्जर देश वंशवाडे सुणो गामरे, जरवाम वासो वसे अजिरामरे ॥ अम तणो पिता मांमण जरवामरे, बालां बाली गामर बहु धामरे ॥ १॥ बालां गासरनो घणो उजाणोरे, सकल कुटुंब सुखीयो तुमे जाणोरे ॥ अमो गाडर रक्षक गोवालरे, गामर सहु राखुं वनमालरे ॥२॥ एक दिवस पिता मांदो पमीयोरे, पुत्र सांजलो थमने ज्वर ॥ ११६
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy