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________________ खंग ६ हो. उदा. मनोवेग कहे सांजलो, पवनवेग सुजाण ॥ बडो अधिकार दाखवुं, मिथ्यामत ावर पुराण ॥ १॥ ढाल पहेली. जाटनी देशी. विद्याधर कुंवर बेहु जणे, कीधां जोगीनां रूप ॥ पाटलीपुर मांहे सांचर्या, लोक | जोवे कल सरूप ॥ १ ॥ जाइ तुमे जोजो मिथ्यात वातडी ॥ ए यांकणी ॥ ब्रह्मशालाए बेहु जण श्रावीया, कीधो नेरी घंटानाद ॥ कनक सिंहासन आरोहीयुं, द्विज आव्या करवा वाद ॥ जा० ॥ २ ॥ जोगी सिंहासन देखीने, विप्र कड़े सुणो तमे वात ॥ वाद जीती बेसो श्रासने, नहीं तो थाशे तुम तो घात ॥ जा० ॥ ३ ॥ मनोवेग तिहां बोलीयो, नहीं गमे जो तुमने एम ॥ तो अमे उतरी देवा बेसशुं, सहु सुख पामो द्विज तेम ॥ जा० ॥ ४ ॥ जट्ट बोले सुणजो जाइ तुमे, कोण वाद
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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