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________________ धर्मपरीमुख जाय ॥ एक बाण नाखे थके, सहस्र संख्या थाय ॥४॥ वासुदेव बल धागले, खंग। सहस पचवीश देव ॥ एता शरीरना देवता, रक्षा करे नित्यमेव ॥ ५ ॥ जे श्रा॥२ ॥ युध लश्कर तणां, लक्ष्मण उपर आवे ॥ ते देवता रदा करे, ते सर्वे निष्फल | थावे ॥६॥ जे लक्ष्मण नाखे तदा, जे उपर ताणी बाण ॥ तेहने सहस गमे सही, जाये तेहना प्राण ॥ ७॥ खरदूषण राजा तिहां, मरण गयो ततकाल ॥ तेणे अवसर लक्ष्मण तव, मनशुं थर उजमाल ॥ ७॥ सिंहनाद करूं जो हवे, कटक जाये सवी नाज ॥ एम चिंतवी तेणे कर्यो, सिंह समो आवाज ॥ ए ॥ ते अवसर रामे तिहां, सुणीयो सिंहनो नाद ॥ सीता मूकी एकली, श्राव्यो करवा वाद ॥ १० ॥ बे माना मली एकग, मार्यो काढ्यो दूर ॥ नागे ले लश्कर वेगलो, जीतनां वाग्यां| तूर ॥ ११॥ चंपनखा उतावली, ग रावणनी पास ॥ श्राकुल व्याकुल थाती थकी, मूकती मुख निःश्वास ॥ १२ ॥ कहेवा लागी नाश्ने, मार्यो मुज जरतार ॥ मुख \ INR देखाडे लोकमें, लाजे नहीं लगार ॥ १३ ॥ रावण उठ्यो सांजली, पुफक देश वि. मान ॥ अद्भुत रूप नवो करी, श्राव्यो सीता गम ॥ १४॥
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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