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________________ राजा प्रतिवासुदेव जरासंघ राजानी सेवा करवा गयो, ते समयनो लाभ लइ पांडवो तथा कौरवोये तेनो देश भांग्यो अनेक | प्रकारे लुटफाट करी महान् उपद्रव कयों, ते वार्ता दमदंतना सांभळवामां आववाथी क्रोध करी घणा सैन्यने लइ दमदंत राजा शीघ्रताथी हस्तिनापुर नगर उपर चड्यो अने त्यां बन्नेने अरसपरस महा घोर रणसंग्राम थयो. परंतु रणसंग्राममां भवितव्यता अने तथा प्रकारना कर्मना संयोगे पांडवो अने कौरवो हार्या अने पोताना नगरमा प्रवेश करी जइ दरवाजाना द्वार बंध करी बेठा. एवी रीते पराभव पामी गयेला तेओने देखी जय पामेल दमदंत पोताना नगर प्रत्ये गयो, अने सुखे करी प्रजाना प्रतिपालन पूर्वक धर्म करवा लाग्यो. एकदा प्रस्तावे राजाये संध्याने विषे लाल, पीळ, लीलु, धोलं, कालं ए पांच प्रकारनुं वादलानुं स्वरूप नीहाल्यु अने तेनी चित्र विचित्रताथी आनंद युक्त थयो परंतु थोडाज वखतमा ते पांच प्रकारना वादलानुं दृष्ट नष्टपणुं देखी वैराग्यने पाम्यो अने विचार करवा लाग्यों के, अहो अहो ! आ संसारमा पण राज्य ऋद्धि वैभव सुख पिता पुत्र बहेन माता स्त्रियादिक सर्व परिवार आ वादलाना पेठे क्षण मात्रमा नाश पामवाना छे, छतां पण आ मूढ जीवो बीलकुल नहि समजता अनेक प्रकारे संसारमा राची माचीने पाप कर्मने करी परलोके कुगतिमा जइ पडे छे. माटे धिकार छ ! आ असार संसारने. आवी रीते वैरागी थइ राज्यने छोडी प्रत्येक बुद्धपणाये दिक्षाने अंगीकार करी नाना प्रकारनी तपस्याने आदरी भूमि मंडलमा विहार करवा लाग्या अने अनुक्रमे विहार करता एक दिवसे हस्तिनापुर नगरना दरवाजाना बाहिर काउस्सग्ग ध्याने रह्या. ते समये क्रीडा करवा जतां पांडवोये रस्तामा ज ते मुनिने देखी तथा लोकोना मोढाथी आ दमदंत राजर्षि छे एवं सांभली जाणीने पांचे पांडवोए जल्दीथी घोडा उपरथी उतरी ते मुनिने प्रदक्षिणा करी 4卐卐卐卐卐卐卐4)!
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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