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________________ 柴 मा ॥ ८३ ॥ चौमासी व्या ख्यान ॥ सी ते राजा पासे गयो. जीतना नीशान चडावीने आवेल रमणने देखी सिंहासन उपर बेसारी त्रण जगतनुं साम्राज्य आपी, मोह राजाये मोतीडे वधाव्यो, अने शांति सागरनी ल्हेरोमां ल्हेर करवा लाग्यो. एवामां वली तेनुं चित्त ठेकाणे आव्युं, अने ते विचार करवा लाग्यो के, अरे भाइ । मने तो एम ज लागे छे के, तने सनेपातनो चाळो थयो छे ? तुं ते रागरंग सांभलवा आव्यो छे अने खडखड हसवा आव्यो छे के ? व्याख्यान सांभळवा ? नाटकीयाना रागो नाटकशालामां घणा सारा गवाय छे अने भांडचेष्टा विगेरे करनारा भवाया लोकोना अने गारुडीक लोकोना घणा सारा राग होय छे. तेमां कल्याण शुं थयुं. जीवोने मार्गपर चडाववानी तेनी सत्ता नथी, ते तो मार्गथी भ्रष्ट करनारा छे. वली सारामां सारी चीजो त्हारे जोवी होय ख्यातो, मुंबइनी कापड मारकीटमां, जरीयान, झींक, तुह, सतारा, कीनखाब, मखमल, साटम, हीरागल, धोती, पोती, पितांबर, ठी व्या पटोला, रेशमी फेनशी देशी-परदेशी वस्त्रो घणा भरेला छे. रमणीयोना रूप रंगमां शुं छे ? बहारनी चामडी रूपाली छे, बाकी तो मल-मूत्र - विष्टाथी भरपूर तेमना शरीरो भरेला छे, हाडका, मांस, रुधिर, मज्जा, मेद शिवाय कांइ. नथी. फक्त चामडी उपर मढायेली छे, तेथी ते ढोलना पेठे मनोहर उपरथी ज छे, शिवाय अंदर आत्माने आनंदना बदले केश उपजावे तेवुं छे. वली घरेणां गांठा जोवा होय तो झवेरी बजारमां तेनो पण कांड तोटो नथी, पण आ सर्वे केवल मोहनी कर्मने बंधावी, दुर्गतिने विषे नाखनार छे. खरी बात तो ए ज छे के, आपणे तो गुरु महाराजना वचनामृतनुं ज पान करवानुं छे. हवली ते साक्षात् अमृत ज छे, किंबहुना अमृत करता पण वधारे हितकारी छे, अमृत तो एकला आ भवमां ज रोगादिकनो नाश करी, पीडा अटकावे छे, पण गुरु महाराजना उपदेश रूपी अमृत तो भवोभव सुधी मरणने अटकावे छे, जन्मजरा षां त न र स्वरूप ॥ 55125 तेर काठीयानुं रू ॥ ८३ ॥ प
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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