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चौमासी
व्याख्यान ॥
काठीयार्नु स्वरूप॥
॥८२ ॥
तन तेणे पटराणीपदे स्थापी
विवेक तेनो मित्र छे. मात्र छ. इंद्रियोनो रोध करनार
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करीने बोल्यो के, बापजी! हुकम करो, आज्ञा करो, निवेदन करो! मने जणावो, एटले आपनो ताबेदार सेवक आपना
दुःखना वादलोने विखेरीने, चुंथी नाखवा समर्थमान छे. त्यारे मोहराजा बोल्यो के, हे रमण! प्रथम समग्र वात सांभळी | वाकेफगार था. आ मनुष्यरूपी नगरीमां जिनेश्वर मोहराजनो अधिपति होदादार आवीने केटलाएक दिवसथी पडयो छे. | तेना पितानुं नाम धैर्य छे, तेनी मातार्नु नाम क्षमा छे, तेने शांति नामनी स्त्री छे, तेने तेणे पटराणीपदे स्थापी छे, दया नामनी तेने बहेन छे, अने सत्य नामनो पुत्र छे. इंद्रियोनो रोध करनार दम जे छ, ते तेनो बांधव छे. सदाचार तेनो प्रधान छे अने विवेक तेनो मित्र छे. तेमना पासे सुमतिरूपी वारांगना, बार भावना रूपी नाटक करे छे अने ते पोताना कुटुंब सहित केटला दिवसथी आवीने पडेल छे. ते लोकोने भोलवी धर्मोपदेश आपी पोतार्नु झुंड जमावे छे, में म्हारा बार सामंतोने मोकली तेना पासे धर्मोपदेश श्रवण करवा जता जीवोने अटकाववा मोकल्या, पण ए इंद्रजालीयो एवो तो प्रबल छ के, तेणे तमाम मानुषोने क्षणवार पण उपदेशथी रहित नहि करवाथी, तेना सांभलनाराये मोटा जमजोद्धा जेवा आलसादिक म्हारा बार योद्धाने हांकी काट्या, अने आजकालमां म्हारो पण नाश करशे. बधा जीवो सारी गतिमा चाल्या जशे. माटे जो त्हारी सत्ता होय तो तुं त्यां जा अने बारे सेनापतिने हराव्यानुं वैर वाल, हवे तुं एक ज म्हारे आंधलानी आंख अने पांगलाना पग समान रहेलो छ,-तेवू श्रवण करी रमण काठीयो बोल्यो के, जो हुं ते सर्वेने न जीतुं तो काले पाणिये उतरी जइश, एम प्रतिज्ञा करी, मोह राजानी रजा लइ धर्म श्रवण करनारा जीवने विषे प्रवेश करी गयो. एटले तेने विचार अवलो आव्यो. वाह, भाइ वाह ! आजनो दिन तो मजानो उग्यो छे, आजे तो सोनुं सुगंध बेह
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