SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौमासी व्याख्यान ॥ तेर काठीयार्नु स्वरूप।। श्रावकोना एकसो ने चोवीस १२४ अतिचारो जे छ, तेनुं संक्षेपथी वर्णन करवामां आवे छे. यतः पणसंलेहण ५ पन्नरसकम्म १५ नाणाइअठपत्तेयं । २४ बारसतव १२ विरियतिगं३ पणसम्म५वयाणपत्तेयं ६० ॥१॥ भावार्थ:-संलेखणाना पांच अतिचारो नीचे प्रमाणे छे. हु इहां तपकर्म करुं छु माटे आ लोकने विषे हुं मनुष्यराजादिक थाउं, एवा प्रकारनी आशंसा करे ते इहलोक आशंसा १, वली इंहां हुं विविध प्रकारना धर्मना अनुष्टानोने करूं छ माटे परलोकने विषे हुं देव थाउं, एवी आशंसा करे, ते परलोक आशंसा कहेवाय २, अहिंयां अणसण करवाथी लोको म्हारुं पूजन भली रीते निरंतर करशे, माटे लांबो वखत जी एवी आशंसा करे, ते जीवित आशंसा कहेवाय ३, मने कोई मानतुं पूजतुं नथी, तेथी अगर निरंतर शरीरमा रहीने पीडा करनारा रोगो, मने बहु ज दुःख दे छे, माटे हुं मरूं तो सारु, आवी जे मरणनी आशंसा करे, ते मरण आशंसा कहेवाय ४, वली म्हारु रूप तथा म्हारा शब्दो सारा थाय, तथा मने कामनी प्राप्ति थाय, तथा गंध रस स्पर्श भोगादिक विगेरे सारा सारा मने मलो, आवा प्रकारनी वांच्छा थाय ते काम- भोगाशंसा कहेवाय ५, संलेखनाने करीए. उपरोक्त प्रमाणे आत्माना अध्यवसाय करे तो, तेने ए प्रमाणे अतिचारो लागे छे. तो ते उपरोक्त अतिचारोने विषे मने कोइपण अतिचार त्रणे कालने विषे लागेलो होय तो हुँ मन वचन कायाथी गुरु महाराज समक्ष मिच्छामि दुकडं मागु छु, एवा प्रकारे आगल उपर जाणी लेवु. yyy卐卐ngs M ॥६०॥
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy