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चौमासी
व्याख्यान ।
| तेर
काठीयार्नु | स्वरूप॥
॥४॥
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तथा समग्र सोपारीना फलो, तेम ज हाटादिकना चूर्णादिक तथा घणु ज मलीन घी, विगेरेनी सारअसारनी परीक्षा कर्या शिवाय भक्षण करनार माणसने निरंतर निश्चय मांसभक्षण करनारना जेटला ज दोषो लागे छे. अजाण्या-फलो-किंपाकादिक अगर जीवने उपद्रव करनारा आत्मानो घात करनारा, फलोतुं भक्षण करनारा जीवोने शास्त्रकार महाराजा मांसना भक्षण करनारा कथन करे छे. पत्रवाला शाकोमां-दरेक पत्रोमां अने नसोमा घणा सूक्ष्म जीवो रहेला होय छे तेथी बारीकाइथी तपास कर्या शिवाय जो तेनुं भक्षण करवामां आवे तो निश्चय भक्षण करनारने मांस भक्षणनो दोष लागे छे. हालमां व्रतधारी जे उपयोगी होय तेना शिवाय तथा जीवदयानी लागणी धरावनारना शिवाय ने जेने विषे जीवो मरे छे, अगर मरेला छे, ते देखी खावामां सूग चडावनार शिवाय पत्रवाला भाजीपालादिक शाकोना खानारा, तेम ज बीजा शाकादिक खानारा, भाग्ये ज तपास करता हशे, कारण के आ जीवोने खावानीज लोलुपता अने हायओय होवाथी आना अंदर जीवो हशे, तेनो घात थशे, म्हारी बुद्धि नष्ट थशे, मने पाप लागशे, आवी भावना स्वमना अंदर पण ते अज्ञानी जीवोने रहेती नथी, तेथी मांस पिंडरूप जीवोना नाशभूत आहारने अभक्ष्यनो प्रेमी जीव राची माचीने करे छ, आवा जीवोनी दशा सज्जन वर्गने शोचनीय बने छे, चोमासानी ऋतुमां तो सर्वथा प्रकारे वनस्पतिने त्याग करवी जोइये, कोइ पण प्रकारे फलफूलोनुं पण भक्षण करवु नहि जोइये. अभक्ष नही कहेवाता भींडा तुरीयाना शाकोमां पण प्रत्यक्षपणे एळो देखाय छे. माटे तमाम शाकादिक छोडी देवा. वली बारे मास ने बत्रीशे घडी बाइयो अने भाइओना मोढा पानना डूचाथी भरेला होय छे. नहि गणे रात्रि के नहि गणे दिवस, जानवरोना पेठे चाव्या ज करे. आवा माणसोने व्रत प्रत्याख्यान उदय आवे ज