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________________ ४२ ] [ द्रव्यानुभव - रत्नाकर । दूसरे प्रश्न उत्तरमें इन्हींके शास्त्र अनुसार निर्णय किया है, सो वहांसे देखो, ग्रन्थके बढ़जानेके भयसे इस जगह नहीं लिख सक्त, परन्तु किञ्चित् युक्ति इस जगह भी दिखाते हैं कि देखो महत्व परिमाण वालातो आकाशको बताते हैं और अनुपरिमाण वाला परमाणुको बतलाते हैं. तो इन दोनों परिमाणवाली बस्तु अचेतन् अर्थात् अजीव ठहरती है, तो उसके सादृश जीवक्योंकर बनेगा, इसलिये इन दोनों परिमाणोंसे विलक्षण मध्यम परिमाण वाला जीव असंख्यात प्रदेशी आकुञ्चन् प्रसारन् स्वभाव वाला स्याद्वाद रीति से अनादि अनन्त है, कभी उसका नाश नहीं होता । और जो मध्यम परिछिन्न परिमाण वाली है वही चेतन अर्थात् ज्ञानवाला होता है, इस ज्ञानवाले जीवको दृढ़ करनेके वास्ते किञ्चित् अनुमान दिखाते हैं कि “यत २ परिछिन्नत्व ं तत्र २ चेतनत्व' यथा सूर्यवत्व” अर्थ - जो २ बस्तु परिमाण वाली होती है सो २ वस्तु चेतन होती है, क्योंकि देखो जैसे सूर्य परिमाण वाला है तो चेतन अर्थात् प्रकाश वाला है, दूसरा इसका प्रतिपक्षी अनुमान करके दिखाते हैं कि "यत्र २ विभूत्वं तत्र २ अचेतनत्व' यथा आकाशवत्व” अर्थ -- जो २ बस्तु विभू अर्थात् अपरिमाण है सो २ बस्तु अचेतन है जैसे आकाश विभू अर्थात् अपरिमाणवाला है सो अचेतन है 1 इस रीतिसे जीव भी अपरिमाण वाला अर्थात् विभू आकाशवत होयतो चेतन अर्थात् प्रकाशवाला न ठहरेगा, इसलिये हे भोले भाइयों इस शुष्क तर्कको छोड़कर श्रीबीतराग सर्वज्ञके वचन ऊपर आस्ता रक्खो, गुरू उपदेश यथावत अनुभव रस चक्खो, जिससे आत्म स्वरूपको लक्खो, तिससे जन्म मरण कभी न क्खो । इस रीतिसे जीवद्रव्य प्रतिपादन किया । और इस जीवको नहीं माननेवाला जो नास्तिक मत है उसका खण्डन मण्डन नंदी, सुयगडांग आदि सूत्रोंमें विशेष करके प्रतिपादन है, और स्याद्वाद रत्नाकर अवतारिका, जैन पताका, सम्मती तर्क आदि ग्रन्थोंमें विशेष करके लिखा है और भी अनेक प्रकरणोंमें जीवका अच्छी तरहसे प्रतिपादन है, इसलिये चार वाक्यादि नास्तिक मतका खण्डन Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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