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________________ द्रव्यानुभव-रत्नाकर।] [३६ है, एकतो अनमिली बस्तुकात्यागी, दूसरा मिली हुई बस्तुको त्याग करता है, सो मिली बस्तुका त्याग करने वालातो अति उत्तम है, परन्तु जो बस्तु की इच्छा है और वो न मिले उसको भी कोई अपेक्षासे त्यागी कहेंगे, इसो रीतिसे पंचथावरमैं भी जो जीव रहने वाले हैं उन जीवोंके अनुकूल बस्तुका न मिलना सोभी किश्चित् अपेक्षासे त्याग है, इस रीतिसे चारित्र भी अपेक्षासे सिद्ध हुआ। ____ चौथा तपभी घटाते हैं, ( तप सन्तापे धातु) सेतप शब्द सिद्ध होता है, तो इस जगह भी बुद्धिसे विचार करके देखेतो पञ्च थावरको भी सन्ताप होता है, दूसरा और भी सुनोंकि शीत, उष्ण आदि तितिक्षाको सहन करना उसीका नाम तप है, तो प्रत्यक्ष देखनेमें आता है कि शीत उष्ण आदि तितिक्षाको पञ्च थावर बराबर सहते हैं, इस रीतिसे तप मी सिद्ध हुआ। पांचवा बीर्य लक्षणको भो घटाते हैं कि बीर्य नाम बल, पराक्रम, शक्ति, इत्याति नामोंसे बोलते हैं, तो अब देखना चाहिये कि विना शक्तिके अथात् वीर्यके विना उस दरख्त आदिकका प्रफुल्लित होना, अथवा उसका वढ़ना कि छोटेका वड़ा होजाना बिना बीर्यके कदापि न होगा, इसीरीतिसे जिस पञ्च थावरमें बीर्य आदिकन होगा उसी थावर की शोभा (रोनक) (चमक) प्रतीति नहीं होती, इसलिये बीर्य भी पांच थावरोंमें सिद्ध होगया। छठां उपयोग लक्षण भी घटाते हैं, कि देखो जैसे बनस्पती दरख्त (वृक्ष) आदिक जब बढ़ता है तब जिधर २ उसको अवकाश मिलता है उधर ही को जाता है, इस रीतिसे उपयोग भी अपेक्षासे पञ्च थावरमें सिद्ध होता है। दूसरी अपेक्षा और भी दिखाते हैं कि अग्निमें ऊर्द्ध (ऊचा ) जानेका उपयोग (स्वभाव) है, जलका अधो (नीचा) जानेका उपयोग (स्वभाव) हैं। वायुमें तिरछा (टेढ़ा) जानेका उपयोग (स्वभाव) है, इस रीतिसे पंच थावरोंमें उपयोग भी सिद्ध होगया। इसरीतिसं जो हमने जीवके छः लक्षण विशेष लिखे थे उनमें जो तुम्हारे को सन्देह हुआ उस तुम्हारे सन्देह दूर करनेके वास्ते किञ्चत् युक्ति Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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