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________________ ३८ ] [द्रव्यानुभव-रत्नाकर। वनस्पति अर्थात् दरख्तों को देखते हैं तो प्रतीति होती है, कि दुःख सुखका भान इनको है, क्योंकि जब सीत (जाड़ा) आदिक अथवा कोई प्रतिकूलता पहुंचनेसे उनकी उदासीनता अर्थात् कुमलानापना मालूम होता हैं, और जब जल आदिककी वृष्टि अथवा और कोई अनुकुल पदार्थ उन दरख्तोंको मिलनेसे वे बनस्पतीके दरख्त प्रफुल्लित शोभायमान मालम देते हैं, इसलिये उनमें किञ्चित् ज्ञान है, इस अपेक्षासे देखनेसे पांच थावरों में ज्ञान भी अव्यक्त स्वरूप प्रतीति देता है। ___ दूसरा दर्शनका लक्षण कहते है कि जिनमतमें चक्षु दर्शन, अचक्षु दर्शन ये दो भेद कहे हैं, तिसमें अचक्षु दर्शन उन पंचशावरमें है, इस रीतिको अपेक्षासे दर्शन भी बनता है। दूसरा सामान्य उपयोग अर्थात् थोडासा वोध होना उसका भी नाम दर्शन है, और विशेष वोध होना सो ज्ञान है, इस रीतिसे भी दर्शन सिद्ध होता है। तीसरी एक अपेक्षा और भी हैं, कि जिसको जिस चीजमें श्रद्धा होती है उसका भी नाम दर्शन है, तो पंच थावरोंमें दुःख सुखकी श्रद्धा अर्थात् जब सुख, दुःख प्राप्ति होता है उसवक्त वेद अनुरूप श्रद्धा उन पंच थावरोंको भी होती है, इस रीतिसे पञ्च थावरों में दर्शन भी सिद्ध हुआ। __तीसरा लक्षण चारित्र कहते हैं कि चारित्र नाम त्यागका है, क्योंकि (चरगति भक्षणयो) धातुसे चारित्र सिद्ध होता है, तो भक्षण अर्थात् कर्मों का क्षय करना सो कर्मोंका क्षय दो रीतिसे होता है, एकतो सकाम निर्जरासे, दूसरा अकाम निर्जरासे, सो सकाम निर्जरासे तो कर्म क्षय समगतिके सिवाय दूसरा कोई नहीं कर सक्ता और अकाम निर्जरासे कुल्लजीव कर्म क्षय करते हैं, क्योंकि जो कर्मक्षय नही होयतो जिस योनि, जिस गतिमें जो जीव प्राप्त हुआ है, उस योनि, उस गतिसे कदापि न निकल सकेगा। इसलिये उस योनि, गतिसे. अकाम निर्जराके ज़ोरसे कर्मक्षय करके दूसरी योनि गतिको प्राप्त होता है, इस रीतिसे पंचथावरमें भी चारित्र सिद्ध हुआ। अब दूसरी अपेक्षा इस चारित्रके घटाने में और भी है सो ही दिखाते हैं, कि चारित्र नाम त्यागका है, तो त्याग दो प्रकारका Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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