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________________ ३४] [ द्रव्यानुभव-रत्नाकर प्रमाण हैं, इसलिए घट प्रमेय हुआ, तो प्रमेय जो घट वा चक्ष को करे ऐसा कदापि न बनेगा, इसलिए तुमने जो प्रमाण माना वह तो तुम्हारे माने हुए पदार्थोंके अन्तरगत होनेसे प्रमेय होगया, इसलिये वो तुम्हारा प्रमाण न बना, तो तुम्हारे माने हुए पदार्थ अप्रमाणिक ठहरे. अप्रमाणिक होनेसे कोई पुरुष बुद्धिमान अङ्गीकार न करेगा। __ ( उत्तर ) को देवानुप्रिय यह तुम्हारा प्रश्न कोई प्रबल युक्ति वाला नहीं किन्तु बालोंकी तरह हैं, क्योंकि अभी तुम्हारेको प्रमाण और प्रमेयकी खबर नहीं हैं, इसलिये तुम्हारी बुद्धिमत्तासे शुष्क तर्क उत्पन्न होतो है, इसलिये तुम्हारेको प्रमाणका लक्षण सहित समझाय कर तुम्हारा सन्देह दूर करते हैं कि, एकतो प्रमेय ऐसा है कि प्रमाण रूप होकर आपही प्रमेय होता है, दूसरा केवल प्रमेय रूप है। जो प्रमाण प्रमेय रूप है वो पहले अपनेको प्रकाश अर्थात् जानकर पश्चात् दूसरे प्रमेयको जानता है, क्योंकि जो स्वयं प्रकाश होगा वही परको प्रकाश करेगा, इस हेतुसे ही श्री वीतराग सर्वज्ञने कहा है सो ही दिखाते है कि, “प्रमाण नय तत्वालोक अलङ्कारके प्रथम परिच्छेदमें प्रथम सूत्र ऐसा है, (स्वय पर व्यवसाई ज्ञानंप्रमाणं") इस सूत्रका अर्थ ऐसा है कि, स्बय नाम अपना, पर नाम दूसरेका, व्यवसाई कहता निश्चय करना अर्थात् निःसन्देह जानना, ऐसा जा ज्ञान उसोका नाम प्रमाण है, इसलिये सर्वज्ञ देव बीतरागने पेश्तर जीव द्रव्यको कहा सो वह जीव द्रव्य प्रमाण और प्रमेय रूप है। क्योंकि जीव अपने ज्ञानसे प्रथम आपको जानता है, पीछे अजीव प्रमेयको जानता है, क्योंकि जो स्वयं प्रकाश होगा वही परको प्रकाश करेगा, जैसे सूर्य पेश्तर अपनेको प्रकाश करता है, पश्चात् दूसरेको प्रकाश करता हैं। तैसेही जीव द्रव्य भी पहले अपनेको प्रकाश कर पश्चात् दूसरेका प्रकाश करता है, इसलिये पदार्थ प्रमाणसिद्ध होगये। जब प्रमाणसिद्ध हुए तो प्रमाणीक ठहरे, इसलिये तुमने जो अप्रमाणीक ठहराये सो सिद्ध न हुए किन्तु प्रमाणीक ठहरे। जब पदार्थ प्रमाण सिद्ध होगये तो अब इनका वर्णन अवश्यमें करना उचित ठहरा, इसलिये दूव्योंका वर्णन करते हैं Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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