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________________ द्रव्यानुभव - रत्नाकर । ] [ ३३ दो पदार्थो का नाम लिखते हैं, एकतो जीव पदार्थ, दूसरा अजीव पदार्थ, अब जीव पदार्थका तो कोई भेद है नहीं और अजीव पदार्थ के चार भेद तो इसरीतिसे हैं, कि आकाशास्तिकाय, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय, यह चारतो मुख्य द्रव्य हैं, और कालको उपचार से जिज्ञासुको समझानेके वास्ते पांचवा द्रव्य माना हैं, इसरोतिसे 'अजीवके पांच भेद कहे और छठा भेद जीवका इसरीतिसे छः भेद अर्थात् छः द्रव्य ज़िन आगममें कहे हैं, इसरीतिसे इन छओं द्रव्योंके नाम कहे । अब इस जगह वादी प्रश्न करता है ( प्रश्न ) तुमजो छः पदार्थ मानते हो सो स्वतह सिद्ध हैं अथवा किसी प्रमाणसे (उत्तर) स्वतह सिद्धतो कोई पदार्थ बनता हैं नहीं, क्योंकि प्रमाणके विन कोई अङ्गीकार नहीं करता इसलिये जो पदार्थ ऊपर लिखें हैं वो प्रमाणसे सिद्ध हैं। ( प्रश्न ) जो प्रमाणसे सिद्ध हैं तो वह प्रमाण इन पदार्थों के अन्त रगत हैं या इनसे जुदा हैं, जो तुम कहो कि जुदा हैं तो तुम्हारे बीतराग सर्वज्ञ देवने छः द्रव्य माने हैं, उनका मानना ही असङ्गत होगया, क्योंकि प्रमाण सातवाँ पदार्थं अलग ठहरा, क्योंकि वो जो अलग होगा तभी उन छः पदार्थों को सिद्ध करेगा, इसलिये तुम्हारे माने हुए पदार्थ न बने, कदाचितू उस प्रमाणको छः द्रव्योंके अन्तरगत मानोगे तो वो भी प्रमेय होजायगा, तबतो व प्रमाण भी प्रमेय होगया. तो फिर उसके वास्ते तुमको कोई और प्रमाण मानना होगा, तब वो प्रमाण भी तुम्हारे -माने हुए पदार्थोंके अन्तरगत होगा और वो भी प्रमेंय ठहरा और इस रीतिसे प्रमाणके वास्ते प्रमाण जुदा २ मानें तो अनावस्ता दूषण हो जायगा, और माना हुआ प्रमाण माने हुए पदार्थोंके अन्तर्गत हुआ तो वो भी प्रमेय हो गया जो वो प्रमाण भी प्रमेय होगया तो फिर तुम्हारे माने हुए पदार्थ किससे सिद्ध करोगे क्योंकि जो प्रमेय होता है वो प्रमाण नहीं होता, क्योंकि देखो चक्षुका घट विषय है तो चक्षु घटको विषय करता हैं अर्थात् देखता है, इसलिये घट प्रमेय है और चक्ष ३ Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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