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________________ द्रव्यानुभव-रखाकर ।] [१६ कारण, और धर्म कथानुयोग निमित्त कारण, और कालादि पाँच समवाय अपेक्षा कारण और चरण कर्णानुयोग कार्य है। और जिस जगह दो ही कारणको अङ्गीकार करे, उस जगह व्यानुयोगतो उपादान कारण और गणितानुयोग निमित्त कारण, और चरण करणानुयोग कार्य है। . (शङ्का ) तुमने अनुयोगोंको कारण कार्य ठहराया परन्तु कार्यतो मोक्ष मार्ग है ? (समाधान ) कार्य ही कारण होजाता है। सो ही दिखाते हैं कि, देखो पहलेतो कार्य होता है, फिर वह अन्य कार्यका कारण हो जाता है। क्योंकि देखो जैसे मिट्टीका पिन्ड थासका कारण है, और थास कार्य है। तैसे ही थास कारण है और कोष कार्य है। तैसे ही कोष कारण है और कुशल कार्य है । कुशल कारण है, कपाल कार्य है। तैसे कपाल कारण और घट कार्य हैं। इसी रीतिसे जब चारित्र रूप कार्य सिद्ध होकर मोक्षका कारण होजायगा तब मोक्ष प्राप्त रूप कार्य हो जायगा। इस लिये इस शङ्काका होना ठीक नहीं है। . (प्रश्न ) शास्त्रोंमें काल, स्वभाव आदि पाच समवायोंको तो, कारण कहा है। परन्तु अनुयोगोंको तो कारण नहीं कहा? - (उत्तर) भो देवानु प्रिय ! तुम्हें जिन शास्त्रोंके जानकार गुरुओंका परिचय यथावत न हुआ, इसलिये तुम्हें सन्देह उत्पन्न होता है। सो तुम्हारा सन्देह दूर करनेके वास्ते प्रथम तुमको समवायोंका स्वरूप दिखाते हैं। यह जो कालादि पञ्च समवाय है सो जगत्के कुल कार्योंमें अपेक्षित हैं। क्योंकि देखो जबतक यह पांच समवाय न मिलेंगे, तब तक जन्म, मरण, खाना, पीना, व्याह ( शादी ), रोजगार, पुण्य, पापादि कोई कार्य न बनेगा। इसलिये यह पांच समवाय संसारी कार्य और मोक्ष कार्य सबमें ही अपेक्षित है। और चारित्र मार्ग साधन केवल इन्हींकी अपेक्षा नहीं, क्योंकि यह पांच Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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