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________________ [ द्रव्यानुभव - रत्नाकर । १८] इसलिये अब मैं अपने घरको जाता हूं। और वह साहूकारका लड़का अपने घरपर आकर अपना रोजगार हाल करता हुआ आनन्दसे रहने लगा । अब इसका द्राष्टान्त उतारते हैं कि देखो श्री बीतराग सर्वज्ञ देव भव्य जीवोंके वास्ते भलावण देते हैं कि जो मेरी आज्ञा पर चलनेवाले प्रणती धर्मके जाननेवाले आत्मार्थी वैराग्य संयुक्त आत्म अनुभव शैलीसे बिचरते हैं, और परभवसे डरते हैं, जिनको मेरे और मेरे बचन पर प्रीति सहित विश्वास, है वही पुरुष तुमको यथावत् परीक्षा करायकर उपादान और निमित्त करणादिको बताय आत्म स्वरूप अनुभव करावेंगे। उनके बिना जोलिङ्ग लेकर दुःख गर्भित, मोह गर्भित लिङ्गधारी, उपजीवी आजीविकाके करने वाले, मालके खाने वाले, बाह्यक्रिया दिखाने वाले, मुनीम गुमास्ताके बतौर हैं, वो कदापि मेरे आगमका कहा हुआ मार्ग न कहेंगे । किन्तु उलटा मेरे आगमका नाम लेकर भ्रम जालमें गेर देंगे । इसलिये उनका सङ्ग न करना । इसरीतिसे द्राष्टांत हुआ । अब चार अनुयोगोंका नाम कहते हैं कि, प्रथमतो दृष्यानुयोग, दूसरा गणितानुयोग, तीसरा धर्मकथानुयोग, चौथा चरण करणानुयोग । प्रथम अनुयोगमें तो द्रव्यका कथन है, दूसरे अनुयोगमें गणित अर्थात् कर्मोकी प्रकृतिका कथन है । और खगोल भूगोलका वर्णन है। सो खगोल भूगोल का वर्णनतो मेरेको यथावत् गुरुगमसे याद हैं नहीं, इसलिये इसका वर्णनतो मैं नहीं कर सक्ता । तीसरे अनुयोग में धर्म की कथा वगैर: कही हैं, और चौथे अनुयोगमें चरण कहतां चारित्रकी बिधि कही हैं। इसरीतिले चारों अनुयोगोंका वर्णन शास्त्रों में जुदा २ कहा है । परन्तु इस जगह कार्य कारणकी व्यवस्था दिखाने के वास्ते कहते हैं कि इन चारों अनुयोगों में कारण कौन है और कार्य कौन है । सो ही दिखाते हैं। जिस जगह चार कारण अङ्गीकार करें उस जगह द्रुष्यानुयोग तो उपादान अर्थात् समवाई कारण, और गणितानुयोग असमबाई Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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