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________________ ( ख ) ऐसे पदार्थ विचारके ग्रन्थ प्राकृत-संस्कृत में तो सिद्धान्त, प्रकरणात भनेक है, परन्तु हिन्दी भाषामें ऐसे ग्रन्थोंका प्रायः अभाव था। इस अभावको दूर करनेके लिये परमपूज्य योगीश्वर जैनधर्माचार्य श्री चिदानंद जी महाराजने यह 'द्रव्यानुभव रत्नाकर' ग्रन्थ स्वानुभव-ज्ञानसे रचकरके जैन समुदायका बड़ा उपकार किया है। इस प्रन्थमें छः द्रव्योंका वर्णन इस खुबीसे किया है कि मंद-बुद्धि वाला जीव भी सरलता-पूर्वक उसे समझ सकता है और किंचित् विशेष बुद्धिवाला सहज ही समझ कर दूसरोंको बोध करा सकता है। प्रारंभमें निश्चय-व्यवहारका स्वरूप समझा कर चारों अनुयोगों पर कारण-कार्यभाव घटाया है, जिसमें अपेक्षा कारणमें पांच समधायोंका स्वरूप, चार पांच वस्तुओं पर उतारके अच्छी तरह समझाया है। फिर छः द्रव्योंके छः सामान्य स्वभावोंके नाम दिखायकर द्रव्यके लक्षण कहें है। अन्यदर्शनीकी तरफसे प्रश्न उठाकर प्रमाण और प्रमेयका यथार्थ स्वरूप समझाया गया हैं। इसके पश्चात् छः द्रव्योंका स्वरूप विस्तार-पूर्वक वर्णन किया गया है, जिसमें सात नयोंका भी स्वरूप विस्तारसे पता कर और अन्य-दर्शनके प्रमाणोंका भी स्वरूप दिखाकर उनको युक्तिशून्य सिद्ध करके जैन-दर्शनके प्रमाण सिद्ध किये गये हैं। अंतमें सप्तभगीका स्वरूप दिखाकर ८४ लक्ष जीवयोनीका स्वरूप बहुत अच्छी तरहसे समझाया है, और आप्तका लक्षण दिखा कर अन्त्य-मंगलाचरणके साथ यह ग्रन्थ समाप्त किया गिया है। ___ इस माफिक संक्षेप में इस ग्रन्थका विषय यहां बताया गया है। इसके सिवाय ओर भी स्व-पर-दर्शनके अनेक ज्ञातव्य विषयोंका भी प्रसंगवश समावेश ग्रन्थकार ने इसमें किया है, जिससे इस ग्रन्थकी उपयोगिता और भी बढ़ गई है। द्रव्यानुयोगके जिज्ञासुओंके लिए यह ग्रन्थ वास्तव में 'रत्नाकर' ही है यह कहने में कोई अत्यक्ति नहीं हैं। यह बात प्रारंभ से अंत तक इस ग्रन्थको पढ़नेसे पाठकोकों स्वयं विदित हागा'. इससे इस विषयमें ज्यादः न कह कर एक बार इस ग्रन्थको मनन " भाद्यन्त पढ़ने का ही मैं पाठकोंको अनुरोध करता हूं। Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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